ऋतुपर्ण
बालासोर रेल दुर्घटना देश क्या दुनिया के भीषणतम हादसों में एक है। याद भी नहीं कि देश में कभी एकसाथ तीन रेलें इस तरह टकराई हों, जिसमें दो सवारी गाड़ी हों। दुर्घटना से जो एक सच सामने आया है, वो बेहद दुखद और चौंकाने वाला है। रिजर्व बोगियों के अलावा बहुत-सी मौतें जनरल बोगियों में सवारों की भी हुईं, जिनकी पहचान कैसे हो पाएगी ? उससे भी बड़ी सच्चाई ये कि देश की अबतक सबसे ज्यादा रेल दुर्घटनाएं स्टेशनों पर पहुंचने से थोड़ा पहले हुईं, जिसका मतलब जब अप और डाउन दोनों ट्रैक किसी स्टेशन पर पहुंचने से पहले यात्री सुविधाओं की दृष्टि से कई लूप ट्रैक में विभाजित हो यात्रियों खातिर प्लेटफॉर्म पर गाड़ियों को पहुंचाते हैं। यहां आगे जा रही या पीछे से आ रही ट्रेनों की स्थिति और निगरानी की जरा-सी चूक हादसों में बदल जाती है। यकीनन ट्रेनों के परिचालन के लिए नित नई उन्नत और नवीनतम तकनीक विकसित होती जा रही है। बावजूद इसके हादसे उतने ही गहरे जख्म भी छोड़ जाते हैं।
दरअसल ये हादसा बहानागा रेलवे स्टेशन के पास शालीमार-चेन्नै कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841), और सर एम. विश्वेश्वरैया टर्मिनल-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (12864) तथा मालगाड़ी एक-दूसरे से टकराने से हुआ। कोरोमंडल एक्सप्रेस डिरेल होकर खड़ी मालगाड़ी से टकराई, डिब्बे गिरे और लोग निकल जान बचाने इधर-उधर भगाने लगे। ठीक उसी समय दूसरे ट्रैक पर यशवंतपुर हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस (12864) आ गई और पहले से गिरी ट्रेनों से टकरा गई। इसके चलते हादसे का रूप भयंकर वीभत्स और दिल दहला देने वाला हो गया। सुबह जब ड्रोन से तस्वीरें मिलनी शुरू हुईं, तो रोंगटे खड़े कर देने वाले दर्दनाक मंजरों ने और डरा दिया। जबकि बोगियों के अंदर की तस्वीरें बेहद दर्दनाक थीं। चारों तरफ क्षत-विक्षत मानव शरीर। मालगाड़ी के डिब्बे के ऊपर सवारी गाड़ियों के डिब्बे एक-दूसरे के ऊपर 50-55 फीट तक जा चढ़े। कई डिब्बे सैकड़ों मीटर दूर तक जा फिकाए। दोनों ही ट्रेन अपनी पूरी क्षमता से भरी थीं, यानी 1750 यात्रियों को लेकर कुल 3,500 यात्रियों की क्षमता के साथ अलग-अलग लेकिन पूरी रफ्तार से दौड़ रहीं थीं। एक की रफ्तार 120 किमी, तो दूसरी की 125 किमी। इतनी रफ्तार में टकराने से क्या हुआ और होता है, सामने दिख रहा है। पिछले 20 वर्षों में यह सबसे बड़ा हादसा है।
बीते बरस की ही बात है, जीरो रेल एक्सीडेण्ड मिशन में ऑटो ब्रेक सिस्टम पर तेजी से काम की खूब बातें हुई। ट्रेन प्रोटेक्शन एण्ड वार्निंग यानी टीपीडब्ल्यूएस तकनीक का ढिंढोरा पिटा। वो प्रणाली बताई गई जिसमें गलती की गुंजाइश नहीं। कोई ट्रेन रेड सिग्नल जंप भी कर जाए तो यह वार्निंग प्रणाली उसे रोक देगी। डिवाइस लोको पायलट के उन क्रियाकलापों को भी मॉनिटर करेगी जिसमें ब्रेक, हार्न, थ्रोटल हैंडल शामिल हैं। यदि कोई लोको पायलट प्रतिक्रिया नहीं देगा या झपकी लग जाए तो ये सिस्टम खुद तुरंत ऐक्टिवेट होकर ब्रेक लगाएगा। यदि ट्रेनों की रफ्तार तय स्पीड से ज्यादा हुई और रेड सिग्नल दिखा, तो भी सिस्टम लोको पायलट का रिस्पांस न मिलने पर तुरंत खुद सक्रिय होगा तथा धीरे-धीरे ब्रेक लगाकर इंजन बंद कर देगा। इस हादसे पर इससे भी बड़ी विडंबना या मजाक ये कि महज एक दिन पहले ही रेल मंत्रालय ने ट्रेन सुरक्षा पर बड़ा चिंतन शिविर किया। नई तकनीकों पर जोरदार पक्ष रखा। रेल के सफर को सुरक्षित और आरामदेह बनाने पर फोकस किया और दावा कि कवच तकनीक से लैस ट्रेनों का आपस में एक्सीडेंट हो ही नहीं सकता। यहां तक कि यदि ये दो ट्रेन आमने-सामने आ भी जाएं तो यह तकनीक उन्हें खुद ही पीछे की तरफ धकेलने लगेगी, मतलब ट्रेन का आगे बढ़ना रुक जाएगा।
दुर्भाग्य देखिए कि कवच की बात सामने आने के चंद घंटों के भीतर ही यह बड़ा हादसा हो गया। रेलवे बोर्ड से पूरे देश में 34,000 किलोमीटर रेल ट्रैक पर कवच सिस्टम लगाने की मंजूरी मिली है। साल 2024 तक सबसे व्यस्त रेल ट्रैक पर इसे लगाना है। इस कवच की तकनीक को रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन यानी आरडीएओ की मदद से पूरे देश के रेलवे ट्रैक पर लगाया जाना है। हालांकि रेल मंत्री के राज्यसभा में दिए जवाब के मुताबिक, यह तकनीक दक्षिण मध्य रेलवे के 1,455 रूट पर लग चुकी है। इस पर वर्ष 2021-22 में 133 करोड़ रुपये, जबकि 2022-2023 में 272.30 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य है। रेलवे, ट्रेन में टीपीडब्ल्यूएस सिस्टम भी लागू कर रहा है, जो ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली का वो सिस्टम है, जिससे एक्सीडेंट कम हो सकते हैं। इसमें हर रेलवे सिग्नल इंजन के कैब में लगी स्क्रीन पर दिखाई देगा। यह घने कोहरे, बारिश या किसी अन्य कारण से खराब मौसम के बावजूद कोई भी सिग्नल मिस नहीं करेगा। ट्रेन की सही गति भी मालूम होती रहेगी, ताकि खराब मौसम में नियंत्रित किया जा सके।
जब देश में इन दिनों वन्दे भारत ट्रेन की चमकदार तस्वीरें सामने होती हैं, बुलेट ट्रेन की बातें गुदगुदाती हैं, तो इसी बीच ऐसी दुर्घटनाओं का काला सच बड़े सवाल की तरह उपस्थित होता है। जाहिर है लोग सवाल तो पूछेंगे कि क्या देश में केवल लक्जरी ट्रेनों के संचालन की प्राथमिकता है और आम लोगों की रेलगाड़ियां और पटरी पर कोई ध्यान नहीं ? भले ही यह राजनीतिक बहस का विषय बने, लेकिन देश में आम सवारी गाड़ियों की हालत ठीक नहीं है। देश के बहुसंख्य आम यात्रियों की सुविधाओं पर भी ध्यान जरूरी है।
लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
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