अमर्त्य रचनाकार हैं विष्णु प्रभाकर

Vishnu Prabhakar

वसुधा ‘कनुप्रिया’

पद्मभूषण विष्णु प्रभाकर (21 जून, 1912 - 11 अप्रैल, 2009) हिन्दी के आधुनिक काल के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। उन्होंने उपन्यास, नाटक, लघुकथाएं, यात्रा संस्मरण और कहानियां लिखकर साहित्य को समृद्ध किया। देशप्रेम, राष्ट्रवाद, सामाजिक विकास, मानववाद प्रमुख रूप से आपकी कृतियों में झलकते हैं। विष्णु प्रभाकर का जन्म मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) जिले के मीरपुर कस्बे में हुआ था। आपके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद और माता का नाम महादेवी था। आपकी माताजी एक पढ़ी-लिखी महिला थीं, जिन्होंने उस समय पर्दा प्रथा का पुरजोर विरोध किया था। आपका आरंभिक नाम विष्णु दयाल था। एक संपादक ने आपको प्रभाकर उपनाम रखने की सलाह दी। विष्णु प्रभाकर ने अपनी हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में अपनी कलम चलाई। बाल अवस्था में लेखन प्रारंभ किया, जो आठ दशकों तक निरंतर जारी रहा।

विष्णु प्रभाकर की प्रारंभिक शिक्षा मीरपुर कसबे में हुई। 12 वर्ष की उम्र में वे हिसार (उस समय पंजाब का भाग) अपने मामा के घर चले गए और युवावस्था तक वहीं रहे। घर की आर्थिक स्थिति कुछ तंग होने के कारण वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर सके और घर चलने के लिए उन्होंने अठारह रुपए मासिक की सरकारी नौकरी पकड़ ली। विष्णु प्रभाकर मेधावी थे, उनमें पढ़ाई के प्रति लगन थी, इसलिए आपने नौकरी के साथ पढाई भी जारी राखी। आपने हिन्दी में प्रभाकर एवं हिन्दी भूषण की उपाधि प्राप्त की। इसके साथ आपने संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बीए की डिग्री भी प्राप्त की। प्रेमचंद, जैनेन्द्र कुमार, यशपाल और अज्ञेय जैसे दिग्गज साहित्यकारों के समकालीन विष्णु प्रभाकर ने अपने लेखन से अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई।

उस समय के सभी युवाओं की तरह आप भी महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों से प्रभावित थे, जिसके चलते आपका रुझान कांग्रेस की तरफ स्वाभाविक ही हो गया। स्वतंत्रता संग्राम में आपने अपनी लेखनी को हथियार बना आंदोलन में भाग लिया और आजादी के लिए संघर्ष किया। इसके कारण आप गिरफ्तार भी हुए और पंजाब छोड़ने के आदेश के कारण नौकरी छोड़कर वर्ष 1944 में दिल्ली आ गए। आपका विवाह 26 वर्ष की उम्र में हरिद्वार की सुश्री सुशीला के साथ हुआ, जिससे आपकी चार संतान हुई - अनीता, अतुल, अमित और अर्चना।

प्रमुख कृतियां

आपने लगभग 300 कहानियां, आठ उपन्यास, तीन लघुकथा संग्रह, 14 नाटक, 17 एकांकी संग्रह, तीन रूपांतर, एक रूपक संग्रह, 23 जीवनी एवं संस्मरण, पांच यात्रा वृतांत संग्रह, आठ विचार निबंध संग्रह, 13 बाल एकांकी, चार बाल नाटक, तीन बाल जीवनी, 17 बाल कहानी संग्रह, एक कविता संग्रह और 19 विविध विषयों पर पुस्तकें लिखी। आपने 64 से अधिक पुस्तकों और पुस्तिकाओं का संपादन भी किया। आपका रचना संसार वृहद् है।

आपके चर्चित उपन्यास - अर्धनारीश्वर, कोई तो, दर्पण का व्यक्ति, परछाई, तट के बंधन; कहानी संग्रह - एक कहानी का जन्म, आदि और अंत, रहमान का बेटा, सफर के साथी, खंडित पूजा, मेरा वतन; कविता संग्रह - चलता चला जाऊंगा; नाटक-नवप्रभात, समाधि, कुहासा और किरण, बंदिनी, विष्णु प्रभाकर संपूर्ण नाटक, सीमा रेखा हैं। आपने जीवनियां, निबंध, नाटक, यात्रा वृतांत, बाल साहित्य में भी बहुत काम किया।

आपकी कृति शरतचंद्र की जीवनी ‘आवारा मसीहा’ को कालजयी रचना माना जाता है। हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर प्रकाशन संस्था के मालिक नाथूराम प्रेमी ने आपको शरद चंद्र की जीवनी लिखने के लिए प्रेरित किया था। स्मृतिशेष विष्णु प्रभारक पुत्र अतुल प्रभाकर कहते हैं, विष्णु प्रभाकर जी 14 वर्ष तक इस कार्य में व्यस्त रहे। आपने सात वर्ष तक विभिन्न स्थानों पर जा-जा कर शरत चंद्र के जीवन पर जानकारी एकत्रित की और साथ ही वर्ष ‘आवारा मसीहा’ लिखने में संलग्न रहे। उन्होंने बताया, वर्ष 1931 में विष्णु प्रभाकर जी की प्रथम कहानी ‘दिवाली के दिन’ लाहौर के ‘हिन्दी मिलाप’ में प्रकाशित हुई थी। वर्ष 1934 से आप नियमित लेखन करते रहे जो अप्रैल 2009 में देहावसान से कुछ माह पहले तक निरंतर चलता रहा। अतुल प्रभाकर ने अपने पिता की पुण्य स्मृति में ‘विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान’ की स्थापना की और वर्षों से इसके माध्यम से साहित्य के संवर्धन के लिए अनेक कार्यक्रम और आयोजन कर रहे हैं। संस्था की ओर से स्थापित और नवांकुर रचनाकारों को ‘विष्णु प्रभाकर स्मृति सम्मान’ सहित अनेक सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए जा रहे हैं।

सम्मान

आपको बहुत से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया। इनमें ‘आवारा मसीहा’ के लिए सोवियत लैंड नेहरू पुरूस्कार (1976), डॉ. ऑफ लिटरेचर (वर्दमान), साहित्य अकादमी सम्मान (1993), महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (1995), पद्मभूषण सम्मान (2004), ज्ञानपीठ मूर्तिदेवी सम्मान प्रमुख हैं।

पद्मभूषण लौटने का किस्सा

स्वतंत्रता के बाद विष्णु प्रभाकर नई दिल्ली में रहने आ गए थे। सितम्बर 1955 में आप आकाशवाणी दिल्ली में नाट्य निर्देशक के तौर पर नियुक्त हो गये, जहां आपने 1957 तक काम किया। वर्ष 2005 में विष्णु जी तब सुर्खियों में आए, जब राष्ट्रपति भवन में कथित दुर्व्यवहार के विरोध स्वरूप उन्होंने पद्मभूषण की उपाधि लौटाने की घोषणा की। अतुल प्रभाकर बताते हैं, तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम जी ने विष्णु प्रभाकर जी को राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया और उन्हें पद्मभूषण सम्मान ना लौटने के लिए कहा। उस समय अतुल कुमार भी अपने पिता के साथ थे।

देहदान

विष्णु प्रभाकर ने अपनी वसीयत में अपने संपूर्ण अंगदान करने की इच्छा व्यक्त की थी। इसलिए उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया, बल्कि उनके पार्थिव शरीर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को सौंप दिया गया। वे स्वास्थ्य समस्याओं के कारण 23 मार्च, 2009 से दिल्ली स्थित महाराजा अग्रसेन अस्पताल में भर्ती रहे। अप्रैल 11, 2009 को 96 वर्ष की आयु में आपने अंतिम श्वास ली। आधुनिक काल ही नहीं, हिन्दी साहित्य के सभी कालखंडों में जब भी महान लेखकों का जिक्र आएगा, विष्णु प्रभारक का नाम अपने बृहद लेखन और कालजयी रचनाओं के लिए ससम्मान लिया जाएगा। आप अपनी कृतियों में अमर्त्य हैं।

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