चीन में बगावत के संकेत

Protest in China

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ आजकल जिस तरह के आंदोलन जगह-जगह हो रहे हैं, वे 1989 में थ्यानमेन चौराहे पर हुए भयंकर नरसंहार की याद ताजा कर रहे हैं। पिछले 33 साल में इतने जबरदस्त प्रदर्शन चीन में दुबारा नहीं हुए। ये प्रदर्शन तब हो रहे हैं, जबकि यह माना जा रहा है कि माओत्से तुंग के बाद शी सबसे अधिक लोकप्रिय और शक्तिशाली नेता हैं। अभी-अभी उन्होंने अपने आपको तीसरी बार राष्ट्रपति घोषित करवा लिया है, लेकिन चीन के लगभग 10 शहरों के विश्वविद्यालयों और सड़कों पर उनके खिलाफ नारे लग रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? सारे अखबार और टीवी चैनल मानकर चल रहे हैं कि ये प्रदर्शन कोरोना महामारी के दौरान जारी प्रतिबंधों के खिलाफ हो रहे हैं।

मोटे तौर पर यह बात सही है। चीन में कोरोना की शुरुआत हुई और वह सारी दुनिया में फैल गया, लेकिन दुनिया से तो वह विदा हो लिया किंतु चीन में उसका प्रकोप अभी तक जारी है। ताजा सूचना के मुताबिक 40 हजार लोग अभी भी उस महामारी से पीड़ित पाए गए हैं। चीनी सरकार ने इस महामारी का मुकाबला करने के लिए दफ्तरों, बाजारों, कारखानों, स्कूल-कॉलेजों और लगभग हर जगह कड़े प्रतिबंध थोप रखे हैं। उनकी वजह से बेरोजगारी बढ़ी है, उत्पादन घटा है और मानसिक बीमारियां फैल रही हैं। इसलिए लोग उन प्रतिबंधों का उल्लंघन कर रहे हैं। उन्हें हटाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन, वे अब इससे भी ज्यादा आगे बढ़ गए हैं।

वे नारे लगा रहे हैं कि शी जिनपिंग तुम गद्दी छोड़ो। इसका कारण क्या है? वह कारण महामारी से भी अधिक गहरा है। वह है - चीनी लोगों का तानाशाही से तंग होना। वे अब लोकतंत्र की मांग कर रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिए यह संदेश घर-घर पहुंच रहा है। इस मांग का सबसे ज्यादा असर शिनच्यांग (सिंक्यांग) प्रांत में देखने को मिल रहा है। उसकी राजधानी उरूमची में 10 लोगों की जान जा चुकी है।

शिनच्यांग में उइगर मुसलमान रहते हैं। उनकी जिंदगी चीन के हान मालिकों के सामने गुलामों की तरह गुजरती है। इस प्रांत में लगभग 30 साल पहले मैं काफी लोगों से मिल चुका हूं। वहां हान जाति के चीनियों के विरुद्ध लंबे समय से आंदोलन चल रहा है। उइगर मुसलमानों के इस बगावती तेवर को काबू करने के लिए लगभग 10 लाख मुसलमानों को सरकार ने यातना शिविरों में डाल रखा है। गैर हान तो चीन की सरकार के विरुद्ध हैं ही, अब हान चीनी भी खुलेआम तानाशाही के खात्मे की मांग कर रहे हैं। लेकिन चीन की सरकार का कहना है कि यदि वह तालाबंदी खोल देगी, तो 80 साल से ज्यादा उम्र के लगभग 50 करोड़ लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ जाएगी। यदि महामारी ने विकराल रूप धारण कर लिया, तो लाखों लोग मौत के घाट उतर जाएंगे। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन यह आंदोलन बेकाबू हो गया तो कोई आश्चर्य नहीं कि चीन का भी रूस की तरह, शायद कम्युनिस्ट पार्टी से छुटकारा हो जाए।

लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।

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