सृष्टि की रचना का रहस्य

Adhyatma

प्रोफेसर डॉक्टर विपिन बिहारी स्वरूप

भारत का अध्यात्म विद्या किसी एक व्यक्ति के कथन पर ही आधारित नहीं है, न किसी एक ग्रन्थ या पुस्तक पर आधारित है, बल्कि एक महासमुद्र है, जो संसार की सभी नदियों व कुओं को जल प्रदान कर सकता है। ईसाई समाज केवल बाइबल को ही प्रमाण मानता है, मुसलमान केवल कुरान को ही प्रमाण मानते हैं, बौद्ध केवल धम्मपद को ही प्रमाण मानते हैं, जैनी केवल महावीर के कथन को ही प्रमाण मानते हैं, किन्तु भारत का यह हिन्दु समाज किसी एक ग्रन्थ, मत या व्यक्ति को ही प्रमाण नहीं मानता, बल्कि सत्य पर आधारित है। जहाँ भी सत्य प्रकट हुआ है, उसे स्वीकार करता है, यही इसकी सहिष्णुता है। यह कट्टरवादी कभी नहीं रहा। यह निराकार, साकार, निर्गुण, सगुण, द्वैत, अद्वैत सभी को स्वीकार करता है। इस अध्यात्मज्ञान के एक नहीं सैकड़ों ग्रन्थ हैं, जिनका मुख्य आधार वेद व उपनिषद ही है। तन्त्र शास्त्र का अध्यात्मज्ञान में विशेष स्थान है। अध्यात्मविद्या इस सृष्टि के मूल तत्त्व की खोज का विज्ञान है। इस दृश्य जगत में दो प्रकार की रचनाएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं, जिनमें एक जड़ सृष्टि है, जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश की गणना होती है तथा दूसरी यह चेतन सृष्टि है, जिसमें वनस्पति, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी व मनुष्य की गणना होती है। प्राचीन ऋषियों ने इसके मूल तत्त्व को खोजने का प्रयत्न किया कि इन दोनों का मूल तत्त्व कोई एक ही है अथवा दोनों भिन्न-भिन्न हैं। यह एक ही है तो वह जड़ है अथवा चेतन स्वरूप है। यदि एक ही है तो जड़ से चेतन प्रकट होता है अथवा चेतन से जड़ प्रकट होता है अथवा इन दोनों का मूल कारण कोई तीसरा ही तत्त्व है, जिससे ये दोनों प्रकट होते हैं ? इस आधार पर जो भी मत प्रकट हुए वे ही अध्यात्म का विषय बने। साथ ही इसे भी जानने का प्रयास किया कि इस मूल तत्त्व से सृष्टि रचना की प्रक्रिया क्या है ? तथा इस मूल तत्त्व को किस प्रकार ज्ञात किया जाए ? इन्हीं को लेकर अध्यात्म विद्या का विकास हुआ। इन प्रश्नों के समाधान के लिए कई धर्मां ने ईश्वर को ही इसका मूल कारण माना। भारत में इसके लिए तीन मत सर्वाधिक प्रचलित रहे, जिनमें एक सांख्य दर्शन है, दूसरा वेदान्त दर्शन है तथा तीसरा तन्त्र शास्त्र है। सांख्य दर्शन ने सृष्टि रचना में जड़ व चेतन नाम वाली दो भिन्न-भिन्न सत्ताओं के अस्तित्व को स्वीकार किया, जिसे प्रकृति व पुरुष नाम दिया। प्रकृति जड़ है, जिससे जड़ सृष्टि की रचना होती है तथा पुरुषतत्त्व चेतन स्वरूप है। दोनों के संयोग से ही जीवसृष्टि की रचना होती है। यह सांख्य दर्शन ज्ञान प्रधान है, यह द्वैतवादी दर्शन है। यह सृष्टि प्रकृति की रचना है तथा पुरुष निर्लिप्त रहता है। पुरुष व प्रकृति के संयोग से चौबीस तत्त्व उत्पन्न होते हैं, जो सृष्टि की रचना करते हैं। यह दर्शन सभी आत्माओं को भिन्न-भिन्न मानता है। यह इन सभी तत्त्वों के ज्ञान को ही दुःख निवृत्ति का उपाय मानता है। प्रकृति से इस पुरुष को अलग मानने से ही मुक्ति होती है। इसका मानना है कि शरीर का नाश हो जाता है, किन्तु आत्मा का नाश नहीं होता। परमात्मा को यह प्रकृति और पुरुष से भिन्न मानता है, जो साक्षी है, नित्यमुक्त है। यह ज्ञान को ही मोक्ष का साधन मानता है। यह जगत को सत्य मानता है। वैदिक कर्मकाण्ड से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। यह दर्शन प्रकृति को नित्य मानता है। यह सांख्य दर्शन सबसे प्राचीन दर्शन है, जिसका सर्वप्रथम उपदेश महर्षि कपिल ने अपनी माता देवहुति को दिया था।

वेदान्त दर्शन - वेदान्त दर्शन भारत का सर्वमान्य दर्शन है, जिसका मुख्य आधार वेद व उपनिषद् है। यह अद्वैतवादी दर्शन है, जो एक ही ब्रह्म को सृष्टि का मूल कारण मानता है। सृष्टि को यह माया का रूप मानता है, जो ब्रह्म के साथ अभिन्न रूप से रहती है। यह ब्रह्म को ही सृष्टि का निमित्त व उपादान कारण मानता है। यह ब्रह्म, सत्, चित् व आनन्द स्वरूप है। यह सृष्टि उसकी कृति नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति है। वही अनेक रूपों में अभिव्यक्त हुआ है। जिस प्रकार बीज में संपूर्ण वृक्ष की सत्ता विद्यमान रहती है, उसी प्रकार ब्रह्म में यह संपूर्ण सृष्टि अप्रकट रूप से विद्यमान रहती है। वह ब्रह्म ही आनन्द स्वरूप है। जीवात्मा और परमात्मा में भेद है। जीवात्मा के सभी कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं। जीवात्मा कर्म करने में स्वतन्त्र है, किन्तु फल भोगने में परतन्त्र है। जीव ईश्वर का ही अंश है। परब्रह्म की अनुभूति चित्त में होती है। ब्रह्म विद्या ही मुक्ति की हेतु है। ब्रह्म की प्राप्ति कर्मां का फल नहीं, वह ज्ञान का फल है। ब्रह्मज्ञान मानने से नहीं होता, जानने से होता है। आदि शंकराचार्य ने भारत में कई बार यात्राएँ कर इसी अद्वैत दर्शन का प्रचार किया, जो भारत का आदर्श धर्म बना। यही आज सर्वमान्य है।

भारत का इस अद्वैत दर्शन के सूफी, आनन्द मार्गी, थियोसोफी, शैव, शाक्त आदि सभी मतावलम्बियों ने स्वीकार किया है। वेदान्त दर्शन आज सर्वमान्य होते हुए भी कई अज्ञानीजन आज भी द्वैत को ही स्वीकार करते हैं। वे जड़ व चेतन को भिन्न मानते हैं, प्रकृति व ब्रह्म को भिन्न मानते हैं, सृष्टि व स्रष्टा को भिन्न मानते हैं, जीव व ब्रह्म को भिन्न मानते हैं। वे कहते हैं कि जीव कभी ईश्वर हो नहीं सकता। यह सब गहन चिन्तन का विषय है। सामान्य बुद्धि से इसे नहीं समझा जा सकता।

तन्त्र शास्त्र - भारत की आध्यात्मिक परम्परा में तन्त्र शास्त्र का विशिष्ट एवं सर्वांच्च स्थान है। इसे वेदों से भी प्राचीन माना गया है। इस शास्त्र में सृष्टि में अद्वैत की मान्यता को ही स्वीकार किया गया है। इसके परम तत्त्व के ज्ञान के लिए पूरी साधना विधि तैयार की गई है, जिसकी साधना से कोई भी साधक इसके सत्य स्वरूप को जान सकता है। इस शास्त्र के कई ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इस विद्या के प्रथम उपदेष्टा स्वयं भगवान शिव ही हैं, जिसको यामल ग्रन्थ कहा जाता है, जिसमें रूदयामल को सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। यद्यपि यह तन्त्र प्रामाणिक है, किन्तु वेदान्त के अधिक प्रचार प्रसार के कारण इसके प्रसार में कमी आई है तथा इसकी क्लिष्टता व अन्य भी कई कारण रहे हैं, जिससे यह सर्वमान्य न हो सका, किन्तु इसकी प्रामणिकता में कोई सन्देह नहीं है। यह भारत की अमूल्य धरोहर है, जिसकी सुरक्षा की जानी चाहिए।

तन्त्र के लिए करके जानना है, स्वयं अनुभव करना है। शब्दों से जानना कोई जानना नहीं है। शब्दों द्वारा कहा गया गलत भी हो सकता है। कुछ ऐसे रहस्य हैं जिनको शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। काम, क्रोध, लोभ, मोह, सुख, दुःख, आनन्द आदि को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। इसकी अनुभूति स्वयं को ही होती है। ये वृत्तियाँ हैं, जो सभी में समान हैं। ये हिन्दु, मुस्लिम में भेद नहीं करतीं। वस्त्र भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, इनके रूप भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, किन्तु मूलरूप सबमें समान है। इन पर नियन्त्रण की विधियाँ भी समान ही हैं। इनपर नियन्त्रण करने से ही मानव का रूपान्तरण हो सकता है। इनको जानना मात्र है। उपदेशों से परिवर्तन नहीं आएगा। तन्त्र स्वयं जानने की बात कहता है।

About the writer : Professor Dr. Bipin Bihari Swaroopa is the University professor of Chemistry (Retired). He has a deep interest in spirituality. This is the reason that the priceless nectarine that he obtained by churning from the ocean of the spitiruality in the last 40 years, has now come to you in the form of a book. After ‘Atma Gyan’, ‘Ishwar Darshan Kaise’  and ‘Mrityu, Parlok aur Punarjanma’ (All in Hindi), this is his fourth book.

In 1980 Professor Bipin Bihari Swaroopa was awarded Ph.D., in Chemistry by Patna University under the guidance of international renowned Professor of Patna University, Dr. J.N. Chatterjee D.Sc., F.N.A. Dr. Swaroopa’s research papers have been published in top journals of India, Germany and America. He synthesized more than hundred new organic compounds. Some of his compounds were found to be biological active. One of his compounds (Alkaloid of Harman series) was reported to be useful as a drug for central nervous system with no side effect. Some of his researches have been included by UGC Delhi in the syllabus of M.Sc.

Apart from chemistry, even in the field of spirituality he memorizes the entire Bhagwadgita and the divine Sahasranama and recites it every day in the early morning 3 am to 6 am (Brahmamuhurta). His all the four books will prove to be a milestone in the world of spirituality, it is my complete belief. Along with this, it can also help you in building a clean society.

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