पाकिस्तान को मदद की जरूरत

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

Flood in Pakistan

पाकिस्तान में पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक संकट गहराया हुआ है। अब प्राकृतिक संकट ने उसका दम फुला दिया है। घनघोर बरसात और बाढ़ के कारण लगभग आधा पाकिस्तान पानी में डूब गया है। सवा हजार से ज्यादा लोग मर चुके हैं। लाखों लोगों के घर ढह गए हैं। करोड़ लोगों को खाने-पीने की सांसत हो गई है। 4,000 किलोमीटर सड़क उखड़ गई है। डेढ़ सौ से ज्यादा पुल ढह गए हैं। 2010 में भी लगभग ऐसा ही भयंकर दृश्य पाकिस्तान में उपस्थित हुआ था, लेकिन इस बार जो महाविनाश हो रहा है, उसके बारे में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने कहा है कि ऐसा वीभत्स दृश्य उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा। यदि यही स्थिति दो-तीन दिन और बनी रही, तो सिंधु नदी और काबुल नदी का उफनता हुआ पानी पता नहीं कितने करोड़ अन्य लोगों को अनाथ कर देगा।

Flood in Pakistan

इस साल पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान में हर साल के मुकाबले तीन गुना से ज्यादा पानी बरसा है। कुछ गांवों और शहरों में इस बार 8-10 गुना पानी ने खेत-खलिहान और बस्तियों को पूरी तरह डुबा दिया है। पाकिस्तान के 150 जिलों में से 110 जिले इस वक्त आधे या पूरे डूबे हुए हैं। यदि प्रकृति का प्रकोप इसी तरह कुछ दिन और चलता रहा, तो पाकिस्तान की हालत अफगानिस्तान और यूक्रेन से भी बदतर हो सकती है। उसके नेता अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और कई मुस्लिम राष्ट्रों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। संयुक्तराष्ट्र संघ ने राष्ट्रों के नाम अपील जारी करके पाकिस्तान के लिए मदद मांगी है। ब्रिटेन ने 15 लाख पाउंड भिजवाए हैं। ईरान, यूएई और सउदी अरब भी जल्दी ही मदद भिजवाने वाले हैं। यूएई 3,000 टन अनाज और दवाइयां भी भिजवा रहा है, लेकिन पाकिस्तान के कई पत्रकारों और नेताओं ने मुझसे फोन पर कहा है कि यदि इस मौके पर भारत भी मदद के लिए हाथ बढ़ाए तो कमाल हो जाएगा।

Flood in Pakistan

वैसे तो 2010 के संकट के समय मैंने खुद राष्ट्रपति आसिफ जरदारी को फोन करके पूछा था कि अगर भारत कुछ मदद पहुंचाए तो कैसा रहेगा ? यही सवाल आज भी हमारे सामने है। हमने श्रीलंका, अफगानिस्तान और यूक्रेन को आड़े वक्त में मदद करके जो सद्भावना अर्जित की है, वह अमूल्य है। जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, वहां के प्रधानमंत्री ने भारत के साथ आपसी रिश्ते सुधारने की बात पिछले हफ्ते ही कही थी। यों भी पाकिस्तान के सिंध, पख्तूनख्वाह और बलूच इलाके इस वक्त सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। यदि नरेन्द्र मोदी सरकार इस वक्त मदद की पहल करे तो उससे दो लक्ष्य पूरे होंगे। एक तो दक्षिण एशिया के वरिष्ठ राष्ट्र होने का दायित्व हम निभाएंगे। दूसरा, भारत की मदद से पाकिस्तान की आम जनता इतनी प्रभावित होगी कि उसका असर उसकी फौज पर भी पड़ेगा, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत से लड़ना ही रहा है। यह भी संभव है कि इस पहल के कारण दक्षेस (सार्क) के जो दरवाजे सात-आठ साल से बंद हैं, वे खुल जाएं। हम यह न भूलें कि 1947 में विभाजन की दीवारें हमारे बीच जरूर खिंच गई हैं, लेकिन हमारे पहाड़, नदियां, जंगल, मैदान और मौसम एक-दूसरे से अलग नहीं हैं।


लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।

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