कुशीनगर जिले के कुम्हार परिवारों का हुनर इलेक्ट्रॉनिक चाक पर सर चढ़कर बोल रहा है। कम्प्यूटर की डिजाइन पर मिट्टी के बर्तन बनाकर कुम्हार विकास की नई कहानी लिखने में जुट गए हैं। डिजाइनर बोतल, गिलास, थाली, मटका, तवा, हांडी, कुल्हड़ की बिक्री से कुम्हारों की आय में पांच गुना तक बढ़ोत्तरी हुई है।
लोग बर्तनों में बने पकवान के स्वाद में मिल रही सोंधी सुगंध के दीवाने हो रहे हैं। कुम्हारों के बनाए बर्तनों की मांग ब्रांड होटल और रेस्टोरेंट तक हो गई है। स्थिति यह है कि कुशीनगर में लगी मिट्टी के बर्तन बनाने की एक ईकाई से 40 परिवार पल रहे हैं।
नगरपालिका क्षेत्र के बुद्धनगरी वार्ड निवासी 54 साल के सुभाष प्रजापति मिट्टी के परंपरागत कुल्हड़ और पात्र बनाकर परिवार की गाड़ी खींच रहे थे। उनके 25 साल के बेटे सुनील ने कुछ महीनों तक बनारस की एक ईकाई में रहकर यह काम सीखकर 2021 में घर पर ही एक यूनिट स्थापित की। सुनील ने ‘लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह’ बनाकर 35 महिलाओं को जोड़ा। वर्तमान में सोलर बैटरी की सहायता से 14 इलेक्ट्रिक चाक पर क्रमवार 35 महिलाएं कार्य कर रही हैं। प्रत्येक महिला 12 से 15 हजार की आमदनी कर रही है। साथ ही सुनील समेत चार भाई, दो बहन व माता-पिता को मिलाकर आठ सदस्यीय परिवार की भी गाड़ी चल निकली है। ईकाई में बोतल, गिलास, थाली, मटका, तवा, हांडी, कुल्हड़ बन रहे हैं।
सुनील कुकर बनाने के लिए सेंट्रल ग्लास एंड सिरेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट खुर्जा जाने की तैयारी में जुटे हैं। सुनील का कहना है कि सरकारी सहायता के नाम पर पर्यटन विभाग ने दो इलेक्ट्रॉनिक चाक उपलब्ध कराया था। सरकार या बैंक ने अन्य कोई सहायता नहीं दी है। सुनील की मांग है कि कुम्हारों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को आसान बैंक ऋण और विशेष मिट्टी आरक्षित करनी चाहिए। मिट्टी के लिए कुम्हारों को प्रति ट्राली पांच हजार चुकाने पड़ रहे हैं।
क्षेत्रीय पर्यटक अधिकारी रविंद्र मिश्र ने बताया कि कुम्हारी कला को पर्यटन विभाग ने आर्ट एंड क्राफ्ट की श्रेणी में रखा है। इसे पर्यटन से जोड़ दिया गया है। ‘पुअर टूरिज्म डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ के तहत चयनित कुम्हारों को सहायता दी जा रही है।
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