मधुबाला का मुगल-ए-आजम की अनारकली का सफर

अजय कुमार शर्मा

Mughal-E-Azam

के. आसिफ ने जब पहली बार ‘मुगल-ए-आजम’ बनाना तय किया, तब उनकी पहली फिल्म ‘फूल’ के निर्माता शिराज अली हकीम ही उसमें पूंजी लगा रहे थे। आसिफ ने अकबर के रोल के लिए चंद्रमोहन को अनुबंधित किया। दुर्गा खोटे को जोधाबाई की भूमिका सौंपी गई, नरगिस को अनारकली बनाया गया और हिमालयवाला को दुर्जन सिंह का रोल दिया गया। हॉल में ही बांबे टॉकीज द्वारा दिलीप कुमार की पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ रिलीज हुई थी। आसिफ ने सलीम का रोल दिलीप कुमार को देने के बारे में सोचा, लेकिन उनके दुबले-पतले और छोटे दिखने के कारण यह रोल फिर सप्रू को दिया गया। संवाद का काम कमाल अमरोही को सौंपा गया। अनिल विश्वास के संगीत में एक गीत भी रिकॉर्ड किया गया, जिसे सितारा ने गाया था। फिल्म का काम धीरे-धीरे चल रहा था कि इस बीच चंद्रमोहन का निधन हो गया। भारत-पाकिस्तान का विभाजन होने के कारण इसके निर्माता शिराज अली हकीम पाकिस्तान चले गए। आसिफ का अपनी पत्नी सितारा से तलाक हो गया। इस सबके चलते फिल्म का काम रुक गया।

इस बीच के. आसिफ ने अपना प्रोडक्शन हाउस खोलकर ‘हलचल’ फिल्म बनाई और ‘मुगल-ए-आजम’ के बारे में भी लगातार सोचते रहे। अब उन्होंने पृथ्वीराज कपूर, दुर्गा खोटे, मुराद, सुरेंद्र, अजित, विजयालक्ष्मी, कुमार आदि कलाकारों को अनुबंधित कर लिया था। अब ‘मुगल-ए-आजम’ में बहार का रोल आसिफ की दूसरी पत्नी निगार सुलताना को सौंपा गया। हलचल में दिलीप कुमार थे और उनसे आसिफ के घनिष्ठ संबंध हो गए थे। अतः वह इस बारे में निश्चित थे कि दिलीप कुमार सलीम की भूमिका निभाने के तैयार हो जायेगें... लेकिन वे इसके लिए ना-नुकुर करने लगे, लेकिन आसिफ ने उन्हें किसी तरह समझा-बुझाकर इस रोल के लिए मना लिया। इतनी तैयारी होने के बाद आसिफ ने अंधेरी में मोहन स्टूडियो के दो कमरे किराए पर लिए और फिल्म के लिए आवश्यक भव्य सेट के निर्माण का कार्य प्रारंभ करवा दिया। अब ‘मुगल-ए-आजम’ के नए निर्माता शापूर जी पालम जी थे। उन्होंने खुलकर अपनी जेब खाली करना शुरू कर दिया। फिल्म के कला निर्देशक एम.के. सईद दिल्ली के लालकिला तथा अन्य पुरातत्त्व वस्तु-संग्रहालय देख आए थे। इस अध्ययन के आधार पर अकबर के. जमाने की पोशाकें तथा उसके महल की वस्तुएं कैसी होनी चाहिए, इसकी खोजबीन करते हुए उनके निर्देशन के अनुसार हर वस्तु का निर्माण होने लगा।

Mughal-E-Azam

कमाल अमरोही, एहसान रिजवी, वजाहत मिर्जा और जीनत अमान के पिता अमानुल्ला खान दिनभर संवादों पर विचार-विमर्श करने लगे। अकबर और सलीम के युद्ध में प्रयुक्त होने वाली पोशाकें, उस काल के अनुरूप उचित ढालें, तलवारें, बाण आदि शस्त्र कहीं मिल पाएंगे या उनके लिए अलग से कारखाना खोलना होगा, इस बात पर भी सलाह मशविरा होने लगा। इतना सब होने के बावजूद ‘मुगल-ए-आजम’ में सर्वाधिक प्रमुख पात्र अनारकली का अब तक कहीं पता ही नहीं था। आखिर आसिफ ने ‘स्क्रिन’ में विज्ञापन देकर सोलह से बाईस आयु वाली युवतियों को अनारकली के रोल के लिए आवेदन-पत्र भेजने की अपील की। इस विज्ञापन में यह भी छपा था कि युवतियों का प्रारंभिक परीक्षण ‘मुगल-ए-आजम’ के निर्माण-प्रबंधक जैदी करेंगे और उनके द्वारा चुनी गई युवतियों का मुंबई में दिलीप कुमार और आसिफ फाइनल करेंगे। इस प्रकार लखनऊ, दिल्ली और हैदराबाद से आठ युवतियों को जैदी ने चुन लिया। उनके स्क्रिन टेस्ट और इंटरव्यू तथा अंतिम निर्णय लेने के लिए उन्हें मुंबई में बुलाया गया, लेकिन अनारकली की भूमिका के लिए कोई खरी न उतरी। हां, इतना जरूर हुआ कि इनमें से एक इंदौर की शीला दलाया को अनारकली की छोटी बहन सुरैया की भूमिका के लिए चुना गया। थक-हारकर आसिफ ने अनारकली के लिए नूतन से बात की, लेकिन उन्होंने उसके लिए नरगिस और मधुबाला का नाम लेकर अपना पल्ला झाड़ लिया।

तभी ‘मुगल-ए-आजम’ को जबरदस्त झटका देने वाली एक घटना घटित हो गई। एम. एंड टी. संस्था के मालिक माखनलाल जैन और उनके पुत्र राजेंद्र जैन ने अनारकली पर फिल्म बनाना तय किया। कमाल अमरोही से कहानी लिखने को कहा गया और निर्देशन का काम भी उन्हें ही सौंपा गया और अनारकली का रोल मधुबाला को दिया गया। इधर इसी समय फिल्मिस्तान कंपनी के निर्देशक शशिधर मुखर्जी ने इसी विषय पर फिल्म बनाने की घोषणा करके इस समस्या को और उलझा दिया। निर्देशक नंदलाल जसवंत, संगीतकार सी. रामचंद्र, गीतकार राजेंद्रकृष्ण और सलीम के रोल के लिए प्रदीप कुमार तथा अनारकली की भूमिका के लिए बीना रॉय आदि को अनुबंधित करके फिल्म की शूटिंग भी धड़ल्ले के साथ शुरू कर दी गई। फिल्मिस्तान की ‘अनारकली’ में ‘मुगल-ए-आजम’ का एक भी कलाकार/तकनीशियन नहीं था। इसलिए आसिफ उनके विरुद्ध किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं कर सकते थे। लेकिन, जैन पिता-पुत्र को समझाकर उन्होंने इस फिल्म को न बनाने को कहा, लेकिन वे तैयार नहीं हुए। अंततः आसिफ ने इंडियन मोशन पिक्चर्स प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (इम्पा) की शरण ली। लेकिन, जैन पिता-पुत्र ने इस संबंध में, हम बहुत आगे बढ़ गए हैं, यह कहकर समझौता करने से साफ इनकार कर दिया।

अब दिलीप कुमार आसिफ की सहायता के लिए आगे आए। तब तक मधुबाला और उनके संबंध काफी नजदीकी हो गए थे। दिलीप कुमार ने मधुबाला को कहा कि वह ‘अनारकली’ में रोल स्वीकार न करें। साथ-साथ यह भी वचन दिया कि ‘मुगल-ए-आजम’ की अनारकली का रोल वे उन्हें ही दिलाएंगे। अप्रैल, 1951 से शुरू हुई इस उठा-पटक का अंत यह हुआ कि आठ महीने बाद अनारकली के कपड़ों में मधुबाला की एक फोटो छापी गई और अताउल्ला खान, मधुबाला, दिलीप कुमार और के. आसिफ की संयुक्त बैठक में यह निर्णय किया गया कि मधुबाला ‘अनारकली’ फिल्म नहीं करेगी और अब वह यह रोल ‘मुगल-ए-आजम’ में निभाएगी। इस प्रकार बहुचर्चित अनारकली का रोल मधुबाला को मिल गया।

Mughal-E-Azam

मधुबाला के निकलते ही जैन पिता-पुत्र की अनारकली का अंततः भट्ठा ही बैठ गया। इधर फिल्मिस्तान ने अपनी ‘अनारकली’ फ़िल्म पूरी करके सन 1953 में प्रदर्शित की। संगीतकार सी. रामचंद्र के स्वरबद्ध किए गए गीत बेहद लोकप्रिय हुए। ‘अनारकली’ का रोल मधुबाला को देने की बात तय होने पर अनुबंध हेतु मधुबाला के पिता अताउल्ला खान ने अपनी नई-नई शर्ते रखना शुरू कर दिया कि रात में शूटिंग नहीं होगी, सेट पर एक भी अतिथि नहीं आएगा, फिल्म के संवादों की पूरी कॉपी हाथ में मिलनी चाहिए आदि ... ये शर्तें इतनी कठोर थीं कि अनुबंध के समय के. आसिफ नाराज हो गए। मधुबाला उनके पीछे दौड़ी और बोली, आसिफ मियां, अब्बा जो कहेंगे, आप इस वक्त उनकी हां में हां मिला दीजिए और कॉन्ट्रैक्ट हो जाने दीजिए। फिल्म में काम तो मैं कर रही हूं। अपनी ओर से पूरा सहयोग दूंगी। इस पर आसिफ ने भी ज्यादा तूल नहीं दिया और अनुबंध पर हस्ताक्षर हो गए।

मधुबाला ने जब ‘मुगल-ए-आजम’ साइन की, तब वह तलवार की ‘संगदिल’, निर्देशक फली मिस्त्री की ‘अरमान’ और रवैल की ‘साकी’ फिल्मों में भी काम कर रही थी। साथ-साथ पी.एन. अरोरा की पार्टनरशिप में चल रही ‘रेल का डिब्बा’ में भी वह काम कर रही थी। ये सारी फिल्में साधारण थीं। उनमें अभिनय करते समय भूमिका में एक-सा बनने तथा फिल्म के मूड में पहुंचने की कोई बात ही नहीं उठती थी। वह बड़ी सहजता के साथ सेट पर आती और अपना रोल निभाकर चलती बनती। ‘मुगल-ए-आजम’ के बारे में भी यही हालत रही। उसकी बार-बार हंसने की आदत आसिफ को खटकने लगी। इस प्रकार चार-पांच दिन बीत जाने पर आसिफ ने उन्हें अलग बुलाकर हिदायत दी कि तुम ‘मुगल-ए-आजम’ में अनारकली का अहम रोल निभाने के लिए यहां आती हो। यहां हंसना, मटकना या चुलबुलाना बिलकुल नहीं चलेगा। इस किरदार के लिए संजीदगी और खामोशी से बर्ताव करना जरूरी है। अगले दिन जब मधुबाला सेट पर आई, तब एक अलग ही मधुबाला थी। शांति और गंभीरता से कदम बढ़ाती हुई वह आसिफ के सामने आ खड़ी हुई। उनका वह रूप देखते ही आसिफ अपने हाथ की सिगरेट की राख झाड़ते हुए और सिगरेट का कश लगाते हुए कह उठे, वाह ! मधु जी ! अब तुम मेरी अनारकली लगती हो।

लेखक, वरिष्ठ साहित्य व कला समीक्षक हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ