प्रेरक हैं ‘रं’ समुदाय के लोग

डॉ. प्रभात ओझा

Pithoragarh

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पिथौरागढ़ यात्रा के दौरान आदि कैलाश के दर्शन और अन्य कार्यक्रमों में शामिल होने के साथ ‘रं’ समुदाय से मुलाकात भी की। यह ‘रं’ नाम स्वयं में आकर्षण पैदा करता है। साथ ही इस समुदाय के बारे में जानने की इच्छा प्रबल होती है। यहीं जान लेना जरूरी है कि इस समुदाय से प्रधानमंत्री का लगाव अचानक नहीं पैदा हुआ है। अपने लोकप्रिय कार्यक्रम मन की बात में नवंबर, 2019 में उन्होंने इस समुदाय की चर्चा की थी। 

हाल के दिनों की बात करें तो इस समुदाय ने एक अनूठी पहल की है। शादी-विवाह में फिजूलखर्ची रोकने के लिए तय किया गया है कि शगुन के तौर पर दुल्हन के हाथ में सिर्फ एक रुपया दिया जायेगा। शादी में शराब परोसने और डीजे के प्रयोग से परहेज रखने का भी फैसला किया गया। ज्ञातव्य है कि रं समुदाय में दहेज पर पहले से ही प्रतिबंध है। अब दुल्हन की मेंहदी में बड़ी संख्या में अतिथियों की जगह सिर्फ घर वाले और नजदीकी रिश्तेदार शामिल होने लगे हैं। बाकी लोग, वह भी भरसक कम संख्या में बारात में शामिल किए जा रहे हैं और बारातियों को शगुन देना भी बंद करने का फैसला कर लिया गया है। यह फैसला लागू करना इसलिए मुश्किल नहीं है कि यह समुदाय मात्र ब्यास, दारमा और चौदास घाटी के कुछ गांव और कुछ हजार की संख्या में ही है।

उक्त सामान्य चर्चा भर से ‘रं’ जैसी जनजाति के महत्त्व को नहीं समझा जा सकता। यह समुदाय भारत की चीन-तिब्बत सीमा के नजदीकी क्षेत्रों में रहता है। मौसम के हिसाब से इस समुदाय के लोगों को अपना स्थान बदलना भी पड़ता है। इसके बावजूद इन्होंने अपनी संस्कृति, खानपान, पहनावा और भाषा को नहीं छोड़ा है। याद करें कि जिन्हें भोटिया और शौका आदि नाम से जानते हैं, ‘रं’ उनके अपने समुदाय की भाषा से ही निकला शब्द है। प्रधानमंत्री ने 2019 में दरअसल, रं समुदाय के जीवट और अपनी संस्कृति के प्रति अटूट लगाव के कारण ही याद किया था। सीमावर्ती क्षेत्रों में मौजूद इन लोगों ने दुश्मनों के प्रति सावधानी में अपने देश की सेनाओं को समय-समय पर मदद भी की है। इसी क्रम में 1962 के युद्ध को देखा जा सकता है। तब धारचूला से लिपुलेख दर्रे तक जाने में चार-पांच दिन लग जाते थे। उस विषम परिस्थिति में भी इस समुदाय के लोगों ने अपनी सेना के लिए राशन से लेकर गोला-बारूद तक ढोए थे। उस समय तिब्बत से होने वाले उनके व्यापार पर विपरीत प्रभाव पड़ा। उसके बाद तो जैसे ‘रं’ समुदाय रोजगार विहीन हो गया, किंतु उसने हिम्मत नहीं हारी। अब तो इस समुदाय के लोग सरकारी सेवाओं के उच्च पदों पर भी हैं। मूल यह कि हर हाल में अपनी भाषा, संस्कृति के मामले में ये अत्यंत आग्रही हैं।

भाषा के प्रति लगाव का यह आलम है कि समुदाय के ही व्यापारी नन्दराम ने ‘रं’ भाषा की लिपि तैयार करने वाले के लिए एक लाख रुपये इनाम का एलान किया। यह चुनौती गर्ब्याल गांव के मकर सिंह गर्ब्याल ने स्वीकार की और आज रं की अपनी लिपि भी है। समुदाय के लोग अपनी भाषा और लिपि का खूब प्रयोग करते हैं। अपनी भाषाओं का रोना रोने वाले समुदायों के लिए रं लोग प्रेरक हो सकते हैं। प्रधानमंत्री ने पिथौरागढ़ यात्रा के दौरान अपने सिर पर जो पगड़ी पहनी, उसे रंगाव्यठलो कहते हैं। यह उसी रं समुदाय से जुड़ी है और नौ मीटर लंबे मखमली सफेद कपड़े से बनती है। समाज अपने पारंपरिक वस्त्रों को करीब दो शताब्दियों से सुरक्षित रखे हुए है। अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखने का यह भाव स्वयं इस समाज का है। अब तो धारचुला में रं संग्रहालय के साथ क्षेत्र में रं कल्याण संस्था बहुत से कार्य कर रही है। लेखक, समाचार एजेंसी से सम्बद्ध रहे हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ