स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के आंदोलन के दौर में जेल जाने, ब्रिटिश जवानों से कोड़े खाने, अपना घर बिक जाने तथा खेती की जमीन तक जब्त हो जाने के बावजूद आजादी के जुनून में कोई कमी नहीं आने दी। ऐसी ही कहानी है पुष्पेंद्र जैन की। आंदोलन के दौरान उन्हें कई बार अपना नाम बदलना पड़ा और जेल गए। मृत्यु के पश्चात प्रशासन उनका मूल नाम रिकॉर्ड में नहीं खोज पाया, ऐसे में उनका अंतिम संस्कार भी बिना तिरंगे के सादगी के साथ ही हुआ।
पूर्व विधायक कालूराम आर्य बताते हैं कि पुष्पेंद्र कुमार जैन को बचपन से ही आजादी के आंदोलन का ऐसा जुनून चढ़ा कि 12-13 वर्ष की आयु के दौरान ही जागीरदारी प्रथा के विरुद्ध हो रहे आजादी के आंदोलन से जुड़ गए। कम उम्र के बावजूद उनका साथ हरिभाई किंकर, प्रजा सेवक के संपादक अचलेश्वर प्रसाद शर्मा, अमोलकचंद सुराणा से हो गया। इसके बाद वे विलायती कपड़ों की होली जलाने के साथ-साथ शराबबंदी आंदोलन से जुड़ गए। उनके पीछे ब्रिटिश सरकार के नुमाइंदे पड़ गए और गिरफ्तारी के लिए इनाम घोषित कर दिया, तो वे गुजरात की ओर चले गए।
पुष्पेंद्र कुमार जैन अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में डायरी में लिखते हैं कि 1931 में वे गुजरात प्रांत में आंदोलनकारियों के साथ कार्य कर रहे थे। 1932 में महात्मा गांधी इंग्लैंड से भारत लौटे, लेकिन उन्हें बंदरगाह पर ही गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद पुष्पेन्द्र अपने को छुपाते हुए मुंबई पहुंच गए। मुंबई के एक बड़े चौक में 4 मार्च, 1932 को ब्रिटिश गवर्नमेंट के विरुद्ध भाषण दे रहे थे, तो उन्हें घेरकर गिरफ्तार कर लिया। सुनवाई के दौरान उन्हें 6 माह की सजा और 100 रुपये जुर्माना लगाया गया। जुर्माना नहीं देने के एवज में डेढ़ माह की जेल और भुगतनी पड़ी। वे जेल में कैदी नंबर 1036 के रूप में रहे। जेल में उनका जमनालाल बजाज से संपर्क हो गया।
जेल से छूटने पर पेट भर खाना खाने के लिए रेलवे स्टेशन पर कुलीगीरी करनी पड़ी और कुछ पैसे जुटाकर वे दक्षिण भारत के बेंगलुरु चले गए, जहां उन्होंने जमनालाल बजाज के बताए गए कार्य को अंजाम दिया। वहां से वे 1938 में अपने पैतृक गांव बिलाड़ा लौट गए। राजस्थान के जोधपुर में हुए एक बड़े आंदोलन के दौरान उन्होंने जोशीला भाषण दिया, जिससे जय नारायण व्यास बहुत प्रभावित हुए और उसी आंदोलन में व्यास ने उन्हें शपथ दिलवाई कि अब मारवाड़ में चल रहे आंदोलन को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे और उस शपथ के तहत उन्होंने मारवाड़ लोक परिषद का गठन किया, जिसमें रणछोड़ दास गट्टानी को अध्यक्ष बनाया गया।
वे डायरी में लिखते हैं कि इस संगठन को चलाने के लिए पैसा नहीं था, तो उन्होंने अपना एक पैतृक मकान बेच डाला। उसी दौरान ब्रिटिश गवर्नमेंट ने उनकी पैतृक जमीन को भी जब्त कर लिया। इसके बावजूद वे कार्य करते रहे, उस समय कांग्रेस के गोकुल भाई भट्ट प्रदेश अध्यक्ष थे। उन्होंने अपने पास बुला लिया और लाल किले पर तिरंगा फहराने के साथ ही घर पहुंचा।
वयोवृद्ध पूर्व विधायक कालूराम आर्य बताते हैं कि आजादी आंदोलन के दौरान जब क्षेत्र में प्रभात फेरियां निकलती थी, तो उनका वे नेतृत्व करते थे। आर्य ने बताया पुष्पेंद्र जैन ने आंदोलन के दौरान अपने कई बार नाम बदले और यही कारण रहा कि प्रशासन के रिकॉर्ड में उनका नाम पुष्पेंद्र जैन नहीं होने से उनका अंतिम संस्कार बिना तिरंगे की शहादत के सादगी के साथ किया गया।
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