योगेश कुमार गोयल
उड़ीसा के बालासोर में 2 जून की शाम को हुए भीषण ट्रेन हादसे में करीब तीन सौ लोग मारे गए हैं और एक हजार से भी ज्यादा घायल हुए हैं। इस हादसे में कोलकाता से चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस पटरी से उतर गई थी और इसी बीच यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस वहां आ गई और कोरोमंडल से टकराकर पलट गई। इस टक्कर के बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस की मालगाड़ी से टक्कर हो गई, जिसमें ट्रेन का इंजन बोगी के ऊपर चढ़ गया। बालासोर के पास बाहानगा बाजार स्टेशन के नजदीक हुए हादसे में पहले कोरोमंडल एक्सप्रेस पटरी से उतरी और यह ट्रेन दूसरी तरफ से आ रही यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस से टकरा गई, जिसके बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस के कुछ डिब्बे पटरी से उतरे और उसी दौरान कोरोमंडल एक्सप्रेस एक मालगाड़ी से जा टकराई।
यह रेल हादसा कितना भयानक था, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि रेल की पटरी सीधे ट्रेन के फर्श को चीरते हुए अंदर घुस गई और बोगी के आरपार हो गई। भारत में आजादी के बाद हुए घातक ट्रेन हादसों में यह हादसा अत्यधिक भीषण हादसा है। इस दर्दनाक हादसे के बाद दुर्घटनास्थल पर किसी का हाथ कटा पड़ा था, तो किसी का पैर, किसी का सिर तो किसी का धड़। रेल सुरक्षा आयुक्त (दक्षिण पूर्व सर्किल) ए.एम. चौधरी को इस रेल दुर्घटना की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालांकि प्रारंभिक संकेतों के अनुसार इस दुर्घटना के पीछे मानवीय चूक मानी जा रही है।
कहा जा रहा है कि देश में 16 महीने बाद कोई ऐसा रेल हादसा हुआ है, जिसमें लोगों की जान गई है। इससे पहले 14 जनवरी, 2022 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में दोमोहानी के पास हुए हादसे में 9 लोगों की जान चली गई थी। तब बीकानेर से गुवाहाटी जा रही बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस की 12 बोगियां पटरी से उतर गई थी। हादसे के समय ट्रेन की गति कम थी, अन्यथा रेल तंत्र की लापरवाही के कारण वह दुर्घटना बहुत बड़ी हो सकती थी। उस समय कहा गया था कि वह हादसा 34 महीने बाद हुआ था। हालांकि वास्तव में ऐसा है नहीं, रेल हादसे निरंतर होते रहे हैं और लोग ऐसे हादसों की बलि चढ़ते रहे हैं। इसी साल 2 जनवरी को राजस्थान में पाली के नजदीक बांद्रा-जोधपुर सूर्यनगरी एक्सप्रेस के 13 डिब्बे बेपटरी हो गए थे, उस हादसे में 26 यात्री घायल हुए थे। 22 अप्रैल, 2021 को लखनऊ-चण्डीगढ़ एक्सप्रेस ने बरेली-शाहजहांपुर के पास क्रॉसिंग पर कुछ वाहनों को टक्कर मार दी थी, जिसमें पांच लोगों की मौत हुई थी। उससे पहले 3 फरवरी, 2019 को जोगबनी से दिल्ली जा रही सीमांचल एक्सप्रेस के 11 डिब्बे पटरी से उतरने से सात से अधिक यात्रियों की मौत हुई थी। ऐसे हादसों में हर बार हताहतों की चीखें खोखले रेल तंत्र की कमियों को उजागर करते हुए समूचे रेल तंत्र को कटघरे में खड़ा करती रही हैं, लेकिन उसके बावजूद रेल हादसों पर लगाम नहीं कसी जा रही।
भारत का रेल तंत्र दुनिया के सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रमों में से एक हैं, जिसे आमजन के लिए जीवनदायी माना जाता है। भले ही देश में हवाई मार्ग और सड़क मार्गों का कितना भी विस्तार हो जाए, फिर भी देश की बहुत बड़ी आबादी यातायात के मामले में रेल नेटवर्क पर ही निर्भर है। रेलों के जरिये प्रतिदिन न केवल करोड़ों लोग यात्रा करते हैं, बल्कि यह माल ढुलाई का भी सबसे बड़ा साधन है। इसके बावजूद इस विशालकाय तंत्र को चुस्त-दुरुस्त और सुरक्षित बनाने पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता और प्रायः इसी कारण रेल हादसे होते रहे हैं। इतने विशाल तंत्र को दुरुस्त रखने के लिए रेलवे को प्रतिवर्ष 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की जरूरत होती है, लेकिन विशेषज्ञ इसके आवंटन को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा रेल तंत्र को मजबूत करने और आधुनिक जामा पहनाने के उद्देश्य से रेल बजट का आम बजट में ही विलय कर दिया गया था, लेकिन अभी तक उससे भी कुछ खास हासिल होता नहीं दिखा। प्रतिवर्ष बजट पेश करते समय रेल पटरियों के सुधार, सुरक्षा उपकरणों को पुख्ता करने तथा रेल यात्रा को सुगम व सुरक्षित बनाने के दावे किए जाते हैं। ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि फिर भी रेल हादसों पर लगाम क्यों नहीं लग रही ? एक तरफ हम देश में बुलेट ट्रेनें चलाने का दम भरते हैं, लेकिन दूसरी ओर पहले से मौजूद विस्तृत रेल तंत्र की अव्यवस्थाओं को दूर करने में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाते।
बहरहाल बार-बार होते रेल हादसों की बहुत लंबी फेहरिस्त है, लेकिन चिंता की बात यही है कि ऐसे हर हादसे की जांच के लिए एक समिति का गठन होता है और फिर अगले हादसे के इंतजार में उस हादसे को भुला दिया जाता है। अभी तक हुए ऐसे तमाम हादसों की जांच का क्या निष्कर्ष निकला, कोई नहीं जानता। लालफीताशाही के चलते हादसों के बाद की जांच समितियों की सिफारिशों को ईमानदारी से लागू नहीं किया जाता। जबतक ऐसे हादसों की जांच के बाद सुरक्षा में लापरवाही बरतने वाले असल दोषियों की पहचान कर उन्हें दंडित करने के लिए कड़े कदम नहीं उठाए जाते, ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति होती रहेगी और हम ऐसी दुर्घटनाओं पर इसी प्रकार केवल शोक व्यक्त करते हुए संवेदना प्रकट करते रहेंगे।
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
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