संसार में परमात्मा हैं एवं परमात्मा में संसार है

Parmatma
प्रोफेसर डॉक्टर विपिन बिहारी स्वरूप

संसार में परमात्मा नहीं हैं एवं 

परमात्मा में संसार नहीं है।

हे अर्जुन ! संसार में परमात्मा है और परमात्मा में संसार है तथा परमात्मा संसार में नहीं हैं और संसार परमात्मा में नहीं है।

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।

मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेव्ववस्थितः।।

गीता 9.4

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य में योगमैश्वरम्।

भूतभृन्न च भूतस्यो ममात्मा भूतभावनः।।

गीता 9.5

मुझ निराकार परमात्मा से यह सब जगत्् जल से बर्फ के सदृश परिपूर्ण है और सब भूत मेरे अन्तर्गत संकल्प के आधार स्थित हैं, किन्तु वास्तव में मैं उनमें स्थित नहीं हूँ। वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं; किन्तु मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देखकर ही भूतों का धारण-पोषण करनेवाला और भूतों को उत्पन्न करनेवाला भी मेरी आत्मा वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है। जैसे अगर तरंग की सत्ता मानी जाय तो तरंग में जल है, और जल में तरंग है। कारण कि जल को छोड़कर तरंग रह ही नहीं सकती। तरंग जल से ही पैदा होती है, जल में ही रहती है और जल में ही लीन हो जाती है।

अतः तरंग का आधार, आश्रय केवल जल ही है। जल के बिना उसकी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है। इसलिए तरंग में जल है और जल में तरंग है। ऐसे ही संसार की सत्ता मानी जाय तो संसार में परमात्मा हैं और परमात्मा में संसार है। कारण कि परमात्मा को छोड़कर संसार रह नहीं सकता। संसार परमात्मा से ही पैदा होता है। परमात्मा में ही रहता है और परमात्मा में ही लीन हो जाता है। परमात्मा के सिवाय संसार की कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है। इसलिए संसार में परमात्मा हैं और परमात्मा में संसार है। अगर तरंग उत्पन्न और नष्ट होनेवाली होने से तथा जल के सिवाय उसकी स्वतंत्र सत्ता न होने से तरंग की सत्ता न मानी जाय, तो न तरंग में जल है और न जल में तरंग है। अर्थात् केवल जल ही जल है और जल ही तरंग रूप से दिख रहा है। ऐसे ही संसार उत्पन्न और नष्ट होनेवाला होने से तथा परमात्मा के सिवाय उसकी स्वतंत्र सत्ता न होने से संसार की सत्ता न मानी जाय तो न संसार में परमात्मा है और न परमात्मा में संसार है, अर्थात् केवल परमात्मा ही परमात्मा हैं और परमात्मा ही संसार रूप से दिख रहे हैं। तात्पर्य यह हुआ कि जैसे तत्त्व से एक जल ही है, तरंग नहीं है, ऐसे ही तत्त्व से एक परमात्मा ही है, संसार नहीं है - ‘वासुदेव सर्वम्’ (गीता - 7.19)

अब कार्य-कारण की दृष्टि से देखें तो जैसे मिट्टी से बने हुए जितने बर्तन हैं, उन सब में मिट्टी ही है; क्योंकि वे मिट्टी से ही बने हैं, और मिट्टी में ही लीन होते हैं अर्थात् उनका आधार मिट्टी ही है। इसलिए बर्तनों में मिट्टी है और मिट्टी में बर्तन है।

परन्तु वास्तव में देखा जाय तो बर्तनों में मिट्टी और मिट्टी में बर्तन नहीं है। अगर बर्तन में मिट्टी होती तो बर्तनों के मिटने पर मिट्टी भी मिट जाती। परन्तु मिट्टी मिटती ही नहीं। अतः मिट्टी, मिट्टी में ही रही, अर्थात् अपने आप में ही स्थित रही, ऐसे ही अगर मिट्टी के बर्तन होते, तो मिट्टी के रहने पर बर्तन हरदम रहते। परन्तु बर्तन हरदम नहीं रहते। इसलिए मिट्टी में बर्तन नहीं है। ऐसे ही संसार में परमात्मा और परमात्मा में संसार रहते हुए भी संसार में परमात्मा और परमात्मा में संसार नहीं है। कारण कि अगर संसार में परमात्मा होते तो संसार के मिटने पर परमात्मा भी मिट जाते। परन्तु परमात्मा मिटते ही नहीं। इसलिए संसार में परमात्मा नहीं हैं। परमात्मा तो अपने आप में स्थित हैं, ऐसे ही परमात्मा में संसार नहीं है। अगर परमात्मा में संसार होता तो परमात्मा के रहने पर संसार भी रहता, परन्तु संसार नहीं रहता। इसलिए परमात्मा में संसार नहीं है। जैसे किसी ने हरिद्वार को याद किया तो उसके मन में हरि की पैड़ी दिखने लग गई। बीच में घंटा-घर बना हुआ है। उसके दोनों ओर गंगाजी बह रही है। सीढ़ियों पर लोग स्नान कर रहे हैं। जल में मछलियां उछल-कूद मचा रही हैं।

यह सब का सब हरिद्वार मन में है। इसलिए हरिद्वार में बना हुआ सब कुछ (पत्थर, जल, मनुष्य और मछलियां आदि) मन ही है। परन्तु जहां चिन्तन छोड़ा, वहाँ फिर हरिद्वार नहीं रहा, केवल मन ही मन रहा।

ऐसे ही परमात्मा ने ‘बहु स्यां प्रजायेय’ संकल्प किया, तो संसार प्रकट हो गया। उस संसार के कण-कण में परमात्मा ही रहे और संसार परमात्मा में ही रहा; क्योंकि परमात्मा ही संसार रूप में प्रकट हुए हैं। परन्तु जहाँ परमात्मा ने संकल्प छोड़ा, वहाँ फिर संसार नहीं रहा, केवल परमात्मा ही परमात्मा रहें।

तात्पर्य यह हुआ कि परमात्मा है और संसार है - इस दृष्टि से देखा जाए तो संसार में परमात्मा और परमात्मा में संसार है। परन्तु तत्त्व की दृष्टि से देखा जाय तो न संसार में परमात्मा है और न परमात्मा में संसार है, क्योंकि वहाँ संसार की स्वतंत्र सत्ता ही नहीं है। वहाँ तो केवल परमात्मा ही परमात्मा है - ‘वासुदेवः सर्वम्’

यही जीवन्मुक्तों की, भक्तों की दृष्टि है। जब तक साधक में यह भाव है कि परमात्मा और संसार दो हैं, तब तक उसको यह समझना चाहिए कि परमात्मा में संसार है और संसार में परमात्मा है। 

यो माँ पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।

तस्याहं न प्रणश्यामि स च में न प्रणश्यति।।

गीता - 6.30

(जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही देखता है और सम्पूर्ण भूतों का मुझ वासुदेव के अन्तर्गत देखता है, उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।)

परन्तु जब दो का भाव न हो, तब न परमात्मा में संसार है और न संसार में परमात्मा है।

संसार को स्वतंत्र सत्ता जीव ने दी है - ‘ययेदं धार्यते जगत््’ (गीता 7.5) संसार की स्वतंत्र सत्ता अहंता, ममता और कामना के कारण ही है। अतः जब तक अहंता, ममता और कामना है, तब तक (साधक की दृष्टि में) परमात्मा में संसार है और संसार में परमात्मा है। परन्तु अहंता, ममता और कामना के मिटने पर (सिद्ध की दृष्टि में) न परमात्मा में संसार है और न संसार में परमात्मा हैं अर्थात् परमात्मा-ही-परमात्मा हैं - ‘वासुदेवः सर्वम्’

About the writer : Professor Dr. Bipin Bihari Swaroopa is the University professor of Chemistry (Retired). He has a deep interest in spirituality. This is the reason that the priceless nectarine that he obtained by churning from the ocean of the spitiruality in the last 40 years, has now come to you in the form of a book. After ‘Atma Gyan’, ‘Ishwar Darshan Kaise’  and ‘Mrityu, Parlok aur Punarjanma’ (All in Hindi), this is his fourth book.

In 1980 Professor Bipin Bihari Swaroopa was awarded Ph.D., in Chemistry by Patna University under the guidance of international renowned Professor of Patna University, Dr. J.N. Chatterjee D.Sc., F.N.A. Dr. Swaroopa’s research papers have been published in top journals of India, Germany and America. He synthesized more than hundred new organic compounds. Some of his compounds were found to be biological active. One of his compounds (Alkaloid of Harman series) was reported to be useful as a drug for central nervous system with no side effect. Some of his researches have been included by UGC Delhi in the syllabus of M.Sc.

Apart from chemistry, even in the field of spirituality he memorizes the entire Bhagwadgita and the divine Sahasranama and recites it every day in the early morning 3 am to 6 am (Brahmamuhurta). His all the four books will prove to be a milestone in the world of spirituality, it is my complete belief. Along with this, it can also help you in building a clean society.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ