चंबल सेंचुरी के रेंजर हरिकिशोर शुक्ला कहते हैं कि आज से दस साल पहले गौरैया चिड़िया ना के बराबर दिखती थी, लेकिन आज गौरैया चिड़िया की जिस तरह से संख्या दिखाई दे रही है, वह कहीं ना कहीं हर किसी को खुश जरूर कर रही है।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सक्रिय सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के महासचिव डॉ. राजीव चौहान ने सर्वेक्षण रिर्पोट का हवाला देते हुए बताया कि गौरैया के संरक्षण की दिशा में चलाए जा रहे अभियान के क्रम में इटावा के लोगों ने अपने-अपने घरों में कृत्रिम घोसले लगा रखे हैं और उन घोसलों में गौरैया चिड़िया अंडे देती है। उसके बाद बच्चे बाहर आते हैं।
इन छोटे-छोटे बच्चों को देखकर लोग ना केवल खुश होते बल्कि संरक्षक की भूमिका भी अदा करने में लगे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि केवल एक या दो घरों में ही गौरैया चिड़िया के बच्चे पल रहे हों, बल्कि 200 से अधिक घरों में गौरैया चिड़िया के बच्चे देखे जा रहे हैं। छोटे-छोटे मासूम बच्चों के चाहचाहट लोगों को खुश भी कर रही है। आगे आने वाला समय गौरैया चिड़िया के प्रजनन काल का है, तो ज्यादातर घरों में यह देखी जाने लगी है।
आवास विकास कॉलोनी में रहने वाली माधवी बताती है कि आज से चार और पांच साल पहले उनको गौरैया चिड़िया के संरक्षण के लिए घोंसला मिला था, जिसके बाद उनके घर पर गौरैया आना शुरू हो गई और उन्होंने अंडे भी दिये और उनके बच्चे होने लगे। ऐसा लगातार चल रहा है। फ्रैंड्स कॉलोनी इलाके के एडवोकेट विक्रम सिंह भी जिनके घर पर पिछले दस सालों से गौरैया चिडिया अपना खुद वा खुद ना केवल घोसला बनाती है, बल्कि अंडे देती है, जिनके छोटे-छोटे बच्चे गौरैया चिड़िया की संख्या में इजाफा करते हैं।
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