जैविक खेती में इस आदिवासी ने तो कर दिया कमाल

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रतलाम जिले के आदिवासी बाहुल्य सैलाना विकासखंड के ग्राम पंथवारी के रहने वाले आदिवासी नागुसिंह जैविक खेती का अलख जगा रहे हैं। नागुसिंह कहते हैं कि रासायनिक उर्वरक से ना केवल भूमि की उर्वरा क्षमता नष्ट हो रही है, बल्कि उससे मिलने वाले उत्पाद भी स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं है। इसलिए सभी लोग जैविक खेती के लिए आगे आएं।

नागु सिंह ने कृषि विभाग के अधिकारी की प्रेरणा से लगभग 5 वर्ष पूर्व जैविक खेती करना प्रारंभ किया। शुरुआत में एक बीघा में जैविक सब्जियां उगाई। जब घर में सब्जी बनाई गई, तो नागुसिंह तथा परिवार को सब्जी का स्वाद बहुत अच्छा लगा, इससे वे समझ गए कि जैविक खाद्य पदार्थ ही मनुष्य के लिए अच्छे होते हैं। वे कहते हैं कि उनके पास लगभग दो हेक्टेयर कृषि भूमि है। पहले कपास, सोयाबीन, मक्का, गेहूं, चने की फसलें लेते थे, जिनमें रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल होता था। जब आत्मा परियोजना के तहत उनको जैविक कृषक के रूप में जोड़ा गया और जैविक समूह के सदस्य बने तो परंपरागत कृषि विकास योजना अंतर्गत एक वर्ग फीट का निर्माण कराया, जिसमें केंचुआ खाद बनती है। उसी खाद का उपयोग उन्होंने अपनी जैविक कृषि में करना प्रारंभ किया। अब वे लगभग एक हेक्टेयर कृषि भूमि में जैविक खेती कर रहे हैं।

उनका कहना है कि जैविक खेती से उत्पादन लागत में 40 प्रतिशत की कमी आई है। उन्होंने जैविक दवाई जीवामृत, दशपर्णी अर्क, वेस्ट डी कंपोजर तथा अजोला यूनिट का निर्माण भी स्वयं किया जिनका उपयोग जैविक खेती में करते हैं। वेस्ट डी कंपोजर के घोल का इस्तेमाल गोबर तथा कचरे आदि को गलाने सड़ाने में करते हैं। अच्छी तरह सड़े हुए गोबर का उपयोग करने से उनकी फसलों में खरपतवार की समस्या भी 20 प्रतिशत तक कम हो गई है। फसलों को सभी पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है।

नागुसिंह आत्मा परियोजना की समस्त गतिविधियों जैसे किसान भ्रमण प्रशिक्षण, किसान मेलों में भाग लेते रहते हैं। आधा हेक्टेयर भूमि में गिलकी, भिंडी, बैंगन, टमाटर इत्यादि के व्यवसाई जैविक उत्पादन की शुरुआत की गई है। जैविक उत्पादन से 50 हजार रुपए की अतिरिक्त आमदनी मिल रही है। वे अपनी शेष आधा हेक्टेयर भूमि में खरीफ की मक्का, सोयाबीन और रबी में गेहूं फसल का जैविक विधि से उत्पादन लेते हैं। नागुसिंह न केवल स्वयं जैविक खेती कर रहे हैं, बल्कि अन्य कृषकों को भी जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उनकी प्रेरणा से गांव और आसपास के गांव के अन्य आदिवासी कृषकों ने भी जैविक खेती शुरू की है। धीरे-धीरे क्षेत्र में बड़ा जैविक रकबा बनता जा रहा है। उनके द्वारा उत्पादित सब्जियां रतलाम बाजार में बिक्री की जाती हैं। नागुसिंह को सी 3 ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट भी प्राप्त हो चुका है।

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