अध्यात्म विज्ञान

Adhyatma

प्रोफेसर डॉक्टर विपिन बिहारी स्वरूप

इस सृष्टि रचना में भौतिक एवं अध्यात्म नाम वाली दो शक्तियाँ कार्य कर रही हैं, जिनको जड़ व चेतन दो नाम दिये जा सकते हैं। इन दोनों की खोज दो भिन्न क्षेत्रों में हुई है, जिनको भौतिक एवं अध्यात्म विज्ञान कहा जा सकता है। इस चेतना शक्ति को जानने के विज्ञान को ही अध्यात्म विज्ञान कहा गया है। भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करना आसान है, क्योंकि उसकी खोज दृश्य पदार्थां पर ही आधारित है, किन्तु यह चेतन तत्त्व अदृश्य है, जिस पर खोज करना इतना आसान नहीं है। यह सामान्य बुद्धि की पकड़ से बाहर का विषय है, जो अतिसूक्ष्म होने से सूक्ष्मबुद्धि का ही विषय है। जो व्यक्ति केवल सांसारिक भोगों में ही लिप्त है, वह सौ जन्मों में भी इस विद्या के रहस्यों को जानना तो दूर रहा, इसे समझ भी नहीं सकता, इसलिए यह विषय सर्वमान्य न हो सका तथा कुछ ही उच्च चेतना सम्पन्न मनीषियों का विषय बनकर रह गया। सामान्य व्यक्ति को इस ज्ञान को देने का शास्त्रों में निषेद भी कर दिया गया कि कोई भी गुरु सद्पात्र को ही इसका उपदेश करे। कुपात्र को इसका उपदेश कदापि न करे, चाहे प्राणों पर संकट ही क्यों न उपस्थित हो। अतः यह ज्ञान सर्वमान्य न हो सका। यदि कोई वैज्ञानिक इस चेतन तत्त्व को जानने की अभिलाषा रखता है, तो वह इसके लिए बताई गई विधियों पर प्रयोग करके जान सकता है। इसमें कोई बाधा नहीं है। बिना प्रयोग व परीक्षण किए किसी सत्य को इन्कार कर देना कोई बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती। यह अध्यात्म विद्या केवल आस्था, श्रद्धा व विश्वास का ही विषय नहीं है, बल्कि पूर्ण विज्ञान सम्मत है, जो साधारण विज्ञान से भी अति उच्च कोटि का विज्ञान है, जिसे जानने के लिए उतने ही अधिक श्रम की आवश्यकता है।

यह अध्यात्म विद्या इस चेतन शक्ति को जानने का विज्ञान है। यह चेतन शक्ति एक अदृश्य शक्ति है, जो सृष्टि रचना का एकमात्र मूल कारण तत्त्व है। सृष्टि की कोई भी रचना हो वह चेतन के बिना संभव ही नहीं है। कोई भी जड़तत्त्व अपने-आप कोई व्यवस्थित रचना नहीं कर सकता। चेतन के गुणधर्म जड़ से सर्वथा भिन्न हैं। सोचना, विचारना, चिन्तन व मनन करना सद् व असद् का विवेक करना, निर्णय करना, कल्पना करना, रचनात्मक कार्य करना, नई योजना बनाना, अच्छे-बुरे का ज्ञान करना, हित-अहित की बात सोचना, उचित-अनुचित का ज्ञान, सही समय पर सही निर्णय लेना, इच्छाशक्ति, संकल्पशक्ति आदि सभी इस चेतना शक्ति के गुण हैं, जो जड़ तत्त्व में नहीं पाये जाते। वह जड़ तत्त्व इस चेतन शक्ति का उपकरण मात्र बन सकता है। वह स्वतन्त्र रूप से अपने आप कोई रचना नहीं कर सकता। अतः चेतन की सत्ता को ही मुख्य रूप से स्वीकार करना पड़ेगा। केवल ईंट, चूने, पत्थर, सीमेन्ट से ही भवन की रचना नहीं हो सकती, जबकि उसकी रचना किसी चेतन प्राणी द्वारा न हो। रोबोट की रचना भी किसी चेतन प्राणी ने ही की है। रोबोट चेतन की रचना नहीं कर सकता। अतः इस चेतन के विज्ञान को जानना ही सर्वाधिक महत्व का है। यह जड़शक्ति एक अन्धशक्ति है, जो विनाश तो कर सकती है, किन्तु रचना का कार्य, विवेकपूर्ण कार्य इससे संभव नहीं है, जो केवल चेतन से ही संभव है, किन्तु यह चेतनशक्ति केवल ज्ञानस्वरूप है, जो स्वयं क्रिया नहीं कर सकती। बिना क्रिया के रचना भी नहीं हो सकती। अतः यह चेतन शक्ति इसी की दूसरी शक्ति क्रियाशक्ति की सहायता से ही सृष्टि रचना का कार्य संपन्न करती है। यह क्रियाशक्ति इसी की सहयोगी शक्ति है, जिसे आगे स्पष्ट किया जा रहा है। इस चेतन शक्ति का विज्ञान इतना गूढ़ व रहस्यमय है कि स्थूल बुद्धि की यह पकड़ में नहीं आता। विज्ञान के प्रयोगों की भाँति इस पर किसी प्रयोगशाला में प्रयोग व परीक्षण भी नहीं किया जा सकता। इसको सूक्ष्मबुद्धि के तल पर ही समझा जा सकता है। अतः यह ज्ञान समान्यजनों की पहुँच से बाहर ही रहा। सामान्यजन को इस निराकार स्वरूप को समझने में बड़ी कठिनाई होती है तथा अशिक्षित व्यक्ति भाषा की कठिनाई के कारण इस निराकार को नहीं समझ सकता। इसको ध्यान में रखकर वेदव्यास जी ने पुराणों की रचना कर इसके गूढ़ रहस्यों व सिद्धातों को समझने के लिए इनको साकार रूप देकर इसे कथा, कहानी, दृष्टान्तों आदि के रूप में प्रकट किया, जिससे यह ज्ञान जनसामान्य तक पहुँच सका। यदि यह पुराण साहित्य न होता, तो वेदों व उपनिषदों के ज्ञान को कौन समझ सकता था व आज भी कितने व्यक्ति इसे समझ पा रहे हैं। पुराणों ने ही इस ज्ञान को बोधगम्य बनाया है। यदि भारत में इस पुराण साहित्य को निकाल दिया जाये, तो भारत की यह अध्यात्म विद्या किस आधार पर टिकी रह सकती है, यह सोचने का विषय है। यह साकार की उपासना, व्रत, त्यौहार, मूर्ति पूजा, यज्ञ आदि कर्मकाण्ड, तीर्थाटन, दान, पुण्य, हवन, कीर्तन, मठ, सत्संग, कथा, प्रवचन आदि ये सब भारतीय अध्यात्म को जीवित रखने के उपकरण हैं, जिनके आधार पर ही भारत की यह अध्यात्म परम्परा जीवित है, जिनका आधार एकमात्र यह पुराण साहित्य है। निराकार व निर्गुण के आधार पर कौन सा समाज अध्यात्मिक बना है, इस पर विचार करने की आवश्यकता है। यह पुराण साहित्य वेदों और उपनिषदों के गूढ़ सिद्धान्तों की व्याख्या है, जिनको कथा, कहानियों, दृष्टान्तों के माध्यम से समझाया गया है, जो इसकी सशक्त विधि है। भारतीय सभ्यता व संस्कृति को जीवित रखने का यही एक माध्यम है, जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती।

About the writer : Professor Dr. Bipin Bihari Swaroopa is the University professor of Chemistry (Retired). He has a deep interest in spirituality. This is the reason that the priceless nectarine that he obtained by churning from the ocean of the spitiruality in the last 40 years, has now come to you in the form of a book. After ‘Atma Gyan’, ‘Ishwar Darshan Kaise’  and ‘Mrityu, Parlok aur Punarjanma’ (All in Hindi), this is his fourth book.

In 1980 Professor Bipin Bihari Swaroopa was awarded Ph.D., in Chemistry by Patna University under the guidance of international renowned Professor of Patna University, Dr. J.N. Chatterjee D.Sc., F.N.A. Dr. Swaroopa’s research papers have been published in top journals of India, Germany and America. He synthesized more than hundred new organic compounds. Some of his compounds were found to be biological active. One of his compounds (Alkaloid of Harman series) was reported to be useful as a drug for central nervous system with no side effect. Some of his researches have been included by UGC Delhi in the syllabus of M.Sc.

Apart from chemistry, even in the field of spirituality he memorizes the entire Bhagwadgita and the divine Sahasranama and recites it every day in the early morning 3 am to 6 am (Brahmamuhurta). His all the four books will prove to be a milestone in the world of spirituality, it is my complete belief. Along with this, it can also help you in building a clean society.

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