आर.के. सिन्हा
जाकिर नाईक जैसे घनघोर कट्टरवादी कठमुल्ले को विशेष अतिथि के रूप में फीफा वर्ल्ड कप 2022 में बुलाकर कतर ने यह साबित कर दिया है कि उसके इरादे नेक तो कतई नहीं हैं। जाकिर नाईक के खिलाफ भारत में वारंट जारी है। हमेशा टाई सूट पहनने वाले जाकिर नाईक पर सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने के गंभीर अभियोग हैं। भारत सरकार इन अभियोगों के आधार पर मलेशिया सरकार से जाकिर नाईक को प्रत्यर्पित करने की लगातार मांग कर रही है। मलेशिया की सरकार धूर्त नाईक को किसी न किसी बहाने बचाती फिर रही है।
दरअसल कतर की तरफ से फीफा की मेजबानी को लेकर पूरी दुनिया में विवाद भी छिड़ा हुआ है और सभी यह मान रहे हैं कि कतर ने पैसे के दम पर मेजबानी हासिल की। लेकिन, सवाल यह है कि वह कौन सी वजह है जिसके लिए कतर इतना बड़ा आयोजन करवाने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए राजी था। अब पता चल रहा है कि वह वजह थी इस्लाम के प्रचार का तगड़ा प्लेटफॉर्म तैयार करना। कई जानकार तो ऐसा ही मानते हैं। कतर सरकार का फीफा के आयोजन के समय जाकिर नाईक को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाना समझ से परे है। उसका कतर में होना ठोस संकेत है कि वह वहां पर फीफा कप के मैच देखने के लिए आए फुटबॉल प्रेमियों के बीच इस्लाम का प्रचार करने के लिए ही आया है या यूं कहें कि बुलाया गया है। जाकिर नाईक अपनी सभाओं में गैर-मुसलमानों से खुलकर कहता है कि वे इस्लाम धर्म अपना लें।
दरअसल कतर फीफा विश्व कप का आयोजन करने के बहाने अपने को दुनिया का सबसे मुखर इस्लामिक देश साबित करना चाहता है। उसे पता है कि फीफा कप को दुनिया के कोने-कोने में देखा जाता है। इसलिए यह एक बेहतर मौका है, फीफा के बहाने इस्लाम के प्रवक्ता बनने का। उसने फीफा कप से पहले बीयर कंपनी बडवाइजर के लिए एक बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी। उसने फीफा कप के दौरान बीयर की सेल पर रोक लगा दी। इसके चलते बडवाइजर को भारी नुकसान हुआ। कतर ने अपने वादे से पलटते हुए फीफा कप की शुरुआत से पहले स्टेडियम में बीयर की बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया है। यह बीयर कंपनी के साथ-साथ फुटबॉल फैंस के लिए भी निराश करने वाली खबर है।
कतर में शराब की सेल होती है। कतर सरकार ने स्टेडियमों के भीतर बीयर की सेल पर रोक लगाकर अपने को एक बड़ा इस्लामिक देश के रूप में पेश करने की कोशिश की है। जाकिर नाईक घनघोर हिन्दू विरोधी है। उसने कुछ समय पहले पाकिस्तान सरकार को इस्लामाबाद में हिन्दू मंदिर निर्माण की इजाजत न देने की सलाह भी दी थी। कह सकते हैं कि जाकिर नाईक ने पाकिस्तान में मंदिर न बनाने संबंधी बयान देकर पाकिस्तान के कठमुल्लों को खुश कर दिया। यानी अगर उसे मलेशिया से कभी बाहर किया गया, तो उसे पाकिस्तान में सिर छुपाने की जगह तो मिल ही जाएगी। जाकिर के हक में हाफिज सईद और मौलाना अजहर महमूद जैसे कठमुल्ले पाकिस्तान सरकार पर दबाव डालने लगेंगे ताकि उसे पाकिस्तान में शरण मिल जाए। इसलिए ही वह पाकिस्तान में मंदिर के निर्माण का विरोध कर रहा था। नाईक को कहीं न कहीं यह भी लगता होगा कि उसे मलेशिया के अलावा भी अपना कोई ठिकाना तलाश कर ही लेना चाहिए। क्योंकि, वहां पर उसका संरक्षक महातिर मोहम्मद तो अब सत्ता से बाहर हो चुका है। महातिर मोहम्मद भी भारत का दुश्मन है। वह कश्मीर से लेकर 370 जैसे मसलों पर भारत की निंदा करने से बाज नहीं आता था।
जाकिर नाईक पिछले कई दशकों से भारत में शांतिपूर्ण सामाजिक वातावरण को विषाक्त करता रहा है। वह एक जहरीला किस्म का शख्स है। उसके तो खून में ही हिन्दू-मुसलमानों के बीच खाई पैदा करना है। जाकिर नाईक लगभग पांच-छह सालों से भारत से भागकर अब मलेशिया जाकर बसा हुआ है। मलेशिया में रहकर नाईक भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और हिन्दू समाज की हर रोज मीनमेख ही निकालता रहता है। जाकिर नाईक ने मलेशिया के हिंदुओं को लेकर भी तमाम घटिया बातें कही हैं। एक बार उसने कहा था कि मलेशिया के हिन्दू मलेशियाई पूर्व प्रधानमंत्री मोहम्मद मोहातिर से ज्यादा मोदी के प्रति समर्पित हैं। अब आप समझ सकते हैं कि कितना नीच किस्म का इंसान है नाईक। मलेशिया में करोड़ों भारतीय मूल के लोग रहते हैं। ये अधिकतर तमिल हिन्दू हैं। कुछ भारतीय मुसलमान और सिख भी हैं।
वहां के भारतवंशी भारत से भावनात्मक स्तर पर तो जुड़े हैं, पर वे मलेशिया को ही अपना देश मानते हैं। वे वहां की संसद तक में हैं। मंत्री भी हैं। उन पर जाकिर नाईक की बेहद गैर-जिम्मेदराना और विद्वेषपूर्ण टिप्पणी कतई सही नहीं मानी जा सकती है। इस बीच, आपने देखा होगा कि भारत का मित्र राष्ट्र होने के बाद भी कतर भारत के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार नहीं कर रहा है। नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी के बाद कतर अकारण ही कुछ जरूरत से ज्यादा ही नाराज हो गया था। हालांकि इसकी कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि भारत सरकार ने नूपुर शर्मा के बयान को खारिज कर दिया था। इस तरह, उसका रवैया कतई मित्रवत नहीं था।
बहरहाल, यह तो स्वीकार करना ही होगा कि चालू फीफा कप को एक अलग रंग देने की कोशिश रही है। सोशल मीडिया पर बहुत सारे लोग कतर की इस बात के लिए भूरि-भरि प्रशंसा भी कर रहे हैं कि एक छोटे से देश ने इतना बड़ा आयोजन कैसे कर दिया। इस प्रशंसा में यह सिद्ध करना भी सांकेतिक है कि इस्लामिक देश कुछ भी कर सकते हैं। हालांकि इस क्रम में दो तथ्य नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। पहला, कतर में उन श्रमिकों का कसकर शोषण हुआ है जो फीफा कप से जुड़े निर्माण कार्यों से जुड़े हुए थे। उनमें भारतीय, नेपाली, पाकिस्तानी और बांगलादेश के मजदूरों की संख्या ही अधिक थी। यानी मजदूरों का शोषण करते समय कतर भूल गया कि पाकिस्तान और बंगलादेश भी तो इस्लामिक मुल्क ही हैं। दूसरा, फीफा कप के लिए बने स्टेडियम और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी प्रोजेक्ट को चीनी कंपनियों ने ही पूरा किया। चीन से तो मानो कतर और इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी की जान ही निकलती है।
सारी दुनिया को पता है कि चीन में मुसलमानों पर भीषण अत्याचार हो रहे हैं। चीन ने मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में रहने वाले मुसलमानों को बुरी तरह कसा हुआ है। उन्हें खान-पान के स्तर पर वह सब कुछ करना पड़ा रहा है, जो उनके धर्म में पूर्ण रूप से निषेध है। यह सब कुछ सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के इशारों पर ही हो रहा है। इस सबके बावजूद कतर और इस्लामिक देश इन अत्याचारों पर चुप हैं। याद नहीं आता कि कतर ने चीन में मुसलमानों पर हो रही ज्यादतियों पर एक शब्द भी विरोध का दर्ज किया हो। हालांकि नूपुर शर्मा मामले में वह भारत को बंदर भभकी दे रहा था। आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के शिनजियांग प्रांत में बने शिविरों में लाखों चीनी मुसलमानों को प्रतिदिन डराया-धमकाया जाता है। यह सब इसलिए हो रहा है ताकि चीनी मुसलमान कम्युनिस्ट विचारधारा को अपना लें। वे इस्लाम से दूर हो जाएं। इन सब तथ्यों पर कतर गौर नहीं करता। उसका तो एक अलग ही एजेंडा है।
लेखक, वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।
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