डॉ. मयंक चतुर्वेदी
पंजाब के मोहाली स्थित चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में छात्राओं के नहाने का वीडियो वायरल होने पर पंजाब ही नहीं, देश का सारा सभ्य समाज बुरी तरह आक्रोशित है। घटना के सामने आने के बाद से लगातार विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं, किंतु हम सभी आज अवश्य विचार करें कि क्या इस प्रकार से घटी यह घटना देश की पहली कोई घटना है ? या नई तकनीकि का जैसे-जैसे विस्तार हो रहा है। इसके खतरे आए दिन इस वीभत्स रूप में हम सभी को देखने को मिल रहे हैं। कहना होगा कि स्त्री देह की गोपनीयता भंग कर उसके अस्तित्व को तार-तार करने वाली यह देश की उन सैकड़ों घटनाओं में से एक है, जोकि प्रायः देश भर में कहीं न कहीं नित्यप्रति घट रही है। वस्तुतः इसी तरह का एक टेप कांड आज से तीस साल पहले राजस्थान में देखने को मिला था, तब 100 लड़कियों की अश्लील तस्वीरें उतारकर उनके साथ महीनों तक यौन शोषण किया गया। यह यौन शोषण एक दो लोगों द्वारा नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से किया गया। 1992 में घटे इस अजमेर सेक्स स्कैंडल ने तत्कालीन समय में समूचे देश को झकझोर कर रख दिया था।
इस घटना में एक बहुत ही नामी कन्या विद्यालय की लड़कियों की अश्लील तस्वीरें अजमेर शरीफ दरागाह का खादिम उतार रहा था। इसका मास्टरमाइंड भी अजमेर शहर यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष फारुक चिश्ती था, जिसने पहले अपने परिवार के दो लोगों नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती को अपने साथ मिलाया और फिर जैसे-जैसे चिश्ती परिवार एवं इसके अन्य दोस्तों के बीच यह बात फैली, वे भी भूखे भेड़िए की तरह स्त्री देह पर टूट पड़े। अजमेर के ख्वाजा मुइनिद्दीन चिश्ती दरगाह से जुड़े इस चिश्ती परिवार के लड़कों ने यौन शोषण की सीमा इस हद तक पार कर दी थी कि एक-एक लड़की के वीडियो और फोटो बनाकर उन्हें अपनी सहेलियों को बुलाने के लिए मजबूर किया जाता रहा। यह दौर रील फिल्म का था, तब जहां यह तस्वीरें बनाई जाती थीं, उन्हें बनानेवाला भी इस यौन शोषण में शामिल हो गया और फिर महीनों तक इन लड़कियों का दैहिक शोषण हुआ। घटना खुलने के बाद अपमान के भय से कई लड़कियों ने आत्महत्या तक कर ली थी।
वस्तुतः चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी की घटना हो या 30 वर्ष पहले 1992 में घटी अजमेर के ख्वाजा मुइनिद्दीन चिश्ती दरगाह के चिश्ती परिवार के लड़कों द्वारा किया गया सामूहिक यौन शोषण हो, दोनों ही मामले सामूहिक स्त्री देह से जुड़े हैं। दोनों घटनाओं का लक्ष्य एक ही है, महिला के मान को तार-तार कर देना। सत्य यह है कि कई बार इस तरह की घटनाएं सामूहिक रूप में सामने नहीं आती हैं, किंतु एकल अनेक घटनाएं प्रतिदिन घट रही हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल में हाल ही में बिला बॉन्ग प्राइवेट स्कूल में पढ़नेवाली तीन वर्ष की बच्ची से जुड़ी एक घटना ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर हमने ये कौन सा सभ्य समाज बनाया है, जहां बच्चे भी महफूज नहीं। ये घटनाएं रोज घट रही हैं, किंतु उसके बाद भी समाज में कोई बड़ी हरकत नहीं दिखती, जैसे हमारा समाज जागृत न होकर मृत समाज हो गया है।
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वर्ष जहां 18 साल से ज्यादा आयु की महिलाओं के साथ बलात्कार के कुल 28,644 मामले दर्ज हुए, वहीं नाबालिगों के साथ बलात्कार की कुल 36,069 घटनाएं हुई हैं। इन 36,069 घटनाओं का एक बड़ा हिस्सा प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसिस एक्ट (पॉक्सो) के अंतर्गत दर्ज हुआ, जबकि बाकी मामले भारतीय दंड संहिता की धारा के तहत दर्ज किए गए। पिछले पांच साल के आंकड़े बताते हैं कि 18 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों की तुलना में नाबालिगों के साथ बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ती दिखी हैं। इस दौरान चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी की तरह ही अनेक अश्लील एमएमएस, वीडियो बनाने के प्रकरण दर्ज किए गए हैं।
विचार करें कि आखिर नारी के प्रति यह दूषित दृष्टि क्यों पनप रही है ? क्या भारतीय समाज, परम्परा, संस्कृति में इस तरह की सोच कभी स्त्री के प्रति रही है, जो वर्तमान समय में अपने निकृष्टतम रूप में देखने को मिल रही है ? इसका उत्तर सीधे तौर पर खोजें तो यह है कि भारतीय मानव अपने संस्कारों से दूर हुआ है, समाज टूट रहा है। जब आप अपनी मूल संस्कृति, जिसमें स्त्री का सम्मान सर्वोपरि रहता आया है, उससे दूर होते हैं, तब स्त्री वस्तु, मनोरंजन का माध्यम और भोग्या बन जाती है। इसलिए हमें अपनी परम्पराओं की ओर शिद्दत के साथ लौटने की आज जरूरत है।
दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद कहता है -
सोमः प्रथमो विविदे गन्धर्वो विविद उत्तरः।
तृतीयो अग्निष्टे पतिस्तुरीयस्ते मनुष्यजाः।। ऋग्वेद 10-85-40।
मंत्र के माध्यम से ऋषि यह उद्घोषणा करते हुए दिखते हैं कि कैसे एक कन्या चंद्रमा, सूर्य, अग्नि और पिता के रूप में अपने लिए पालनकर्ताओं को प्राप्त करती है और संपूर्ण क्षेत्र में उत्तरोत्तर आगे बढ़ती है।
दुर्गासप्तशती, मार्कण्डेय पुराण में ऐसे अनेक श्लोक हैं, यथा - विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियाः समस्ताः सकला जगत्सु। स्त्री की कोमलता, करुणा, संवेदना, सौन्दर्य आदि श्रेष्ठताओं के रूप में माँ पराम्बा ही अभिव्यक्त है, अतः स्त्री तत्व के प्रति आदर भाव दैवसत्ता की प्रसन्नता एवम् लौकिक पारलौकिक उत्कर्ष प्रदाता है ! इसका एक अर्थ यह भी है कि हे देवी ! सम्पूर्ण विद्याएं तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरुप हैं। जगत में जितनी स्त्रियां हैं, वे सब तुम्हारा ही रूप हैं। हे जगदम्बा ! एकमात्र आपसे ही सारा विश्व व्याप्त है। शास्त्रों में कहा है - दस उपाध्यायों से एक आचार्य श्रेष्ठ है, 100 आचार्यों से एक पिता श्रेष्ठ है, 1,000 पिताओं से एक माता उत्तम है।
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता।
यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वास्तत्राफला क्रियाः।।
उक्त श्लोक मनुस्मृति से है, जिसमें कहा गया है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास होता है। जहां नारी की पूजा नहीं होती, वहां पर किए गये कार्य निष्फल हो जाते हैं। इसी प्रकार से शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्। न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।। अर्थात् जिस परिवार में स्त्रियां दुर्व्यवहार के कारण शोकसंतप्त रहती हैं, उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है। जहां स्त्रियां प्रसन्न रहती हैं, वहां सर्वदा वृद्धि होती है। परिवार की पुत्रियों, बधुओं, नवविवाहिताओं आदि जैसे निकट संबंधिनियों को ‘जामि’ कहा गया है।
जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः।।
अर्थात जिन घरों में पारिवारिक स्त्रियां निरादर-तिरस्कार के कारण असंतुष्ट रहते हुए शाप देती हैं, यानी परिवार की अवनति के भाव उनके मन में उपजते हैं, वे घर सभी प्रकार से नष्टता को प्राप्त करते हैं।
तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः।
भूतिकामैर्नरैर्नित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च।।
अर्थात ऐश्वर्य एवं उन्नति चाहने वाले व्यक्तियों को चाहिए कि वे पारिवारिक संस्कार-कार्यों एवं विभिन्न उत्सवों के अवसरों पर पारिवार की स्त्रियों को आभूषण, वस्त्र तथा सुस्वादु भोजन आदि प्रदान करके आदर-सम्मान व्यक्त करें।
सन्तुष्टो भार्यया भर्ता भर्त्रा भार्या तथैव च।
यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्।।
अर्थात जिस कुल में प्रतिदिन ही पत्नी द्वारा पति संतुष्ट रखा जाता है और उसी प्रकार पति भी पत्नी को संतुष्ट रखता है, उस कुल का भला सुनिश्चित है। ऐसे परिवार की प्रगति अवश्यंभावी है।
अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं।
चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं।।
अर्थात घोड़े की शोभा उसके वेग से होती है और हाथी की शोभा उसकी मदमस्त चाल से होती है। नारियों की शोभा उनकी विभिन्न कार्यों में दक्षता के कारण और पुरुषों की उनकी उद्योगशीलता के कारण होती है।
स्त्रियां तु रोचमानायां, सर्वं तद्रोचते कुलम्।
तस्यां त्वरोचमानायां, सर्वमेव न रोचते।।
अर्थात स्त्रियों के आभूषण-वस्त्र आदि से प्रसन्न रहने पर उसका वह सारा कुल शोभित होता है। उनके प्रसन्न न रहने पर सभी कुछ अच्छा नहीं लगता है। तात्पर्य यह है कि जिस घर में स्त्रियां सुखी हैं, उसी घर में समृद्धि और प्रसन्नता विद्यमान रहती हैं। जहां स्त्रियां प्रसन्न नहीं रहती हैं, वहां कुछ भी अच्छा नहीं लगता है; अर्थात् सम्पूर्ण कुल मलिन रहता है।
पितृभिर्भातृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा।।
पूज्या भूषयितव्याश्च बहुकल्याणमीप्सुभिः।।
अर्थात अपना अधिक कल्याण चाहने वाले माता-पिता आदि द्वारा, भाइयों द्वारा, पतियों तथा देवरों द्वारा इन स्त्रियों को वस्त्र-आभूषण आदि द्वारा अलंकृत करना चाहिए; अर्थात स्त्री चाहे जिस रूप में; माता, बहन, पत्नी अथवा अन्य कोई भी हो, उसका सम्मान अवश्य करना चाहिए। वस्तुतः यह कुछ भारतीय प्राचीन ज्ञान परम्परा के उदाहरण हैं, जिनमें स्पष्ट तौर पर कन्या-स्त्री के प्रति परम आदर भाव दर्शाया गया है। तत्कालीन समय में इन श्लोकों के हिसाब से ही समाज व्यवहार करता था। किंतु वर्तमान में जो दिखाई देता है, उसमें यह आदर्श कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। इसलिए आज यह जरूरी हो गया है कि हम पुनः अपने श्रेष्ठतम अतीत की ओर लौटें। जो उत्तम है, उसे वर्तमान का आधार बनाएं। अन्यथा भोपाल में छोटी बच्ची और चंडीगढ़ में छात्राओं के नहाने जैसे वीडियो वायरल होते रहेंगे और हम सभी मूकदर्शक बन देखते रहेंगे !
लेखक, फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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